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सूर्यनाड़ी में लगातार अमुक दिन तक वायु के चलते रहने पर कालज्ञान
५३३ अर्थ-पोष्णकाल में सूर्यनाड़ी में ग्यारह दिनों तक वायु चलता रहे तो ७२० दिनों में से एक चौबोसो कम अर्थात् ७२०-२४=६६६ दिन तक मनुष्य जीवित रहता है।
तथैव द्वादशाहानि वायौ वहति जीवति ।
दिनानां षट्शतोमष्टचत्वारिंशत्समन्विताम् ॥१८॥ अर्थ-उसी तरह बारह दिन तक वायु सूर्यनाड़ी में चलता रहे तो वह बो चौबीसी कम अर्थात् ६९६-४८=६४८ दिन तक जीवित रहता है । तथा
त्रयोदशदिनान्यर्कनाडोचारिणि मारुते।।
जीवेत्पंचशतीमह्नां षट्सप्ततिदिनाधिकाम् ॥१९॥ उसी तरह तेरह दिन तक सूर्यनाड़ी में लगातार पवन चले तो ६४८ दिनों में से चौबीसी कम, अर्थात् ६४८-७२=५७६ दिन तक वह जीवित रहता है । तथा
चतुर्दशदिनान्येव, प्रवाहिणि समीरणे ।
अशोत्यभ्यधिकं जीवेद, अह्नां शतचतुष्टयम् । १००॥ अर्थ-उसी प्रकार चौदह दिन तक सूर्यनाड़ी में पवन चलता रहे तो ५७६ दिनों में से चार चौबीसी कम अर्थात् ५७६ . . ६६-- ४८० दिनों तक वह जीवित रहता है।
तथा पंचदशाहानि यावद् वहति मारते।
जीवेत् षष्ठिदिनोपेतं, दिवसानां शतत्रयम् ॥१०१॥ अर्थ- उसी तरह पन्द्रह दिन तक सूर्यनाड़ो में पवन चलता रहे तो ४८० विनों में से पांच चौबीस कम अर्थात् ४८०- १२०-३६ दिन जीवित रहता है।
__एक-द्वि-त्रि-चतुः-पंच-द्वादशाहक्रमक्षयात् ।
षोडशाद्यानि पंचाहान्यत्र शोध्यानि तद् यथा ॥१०२॥ अर्थ-सोलह, सत्रह, अठारह, उन्नीस और बीस दिन तक एक ही सूर्य पड़ी में वायू लगातार चलता रहे तो पूर्वाक्त ३६० दिनों में से क्रमशः एक बारह तथा दो, तीन, चार और पांच बारह दिन कम कर देने पर उतने दिन तक जीवित रहता है। इसका विवरण आगे स्वयं स्पष्ट करते हैं
प्रवहत्येकनासायां षोडशाहानि मारुते ।
जीवेत्सहाष्टचत्वारिंशतं दिनशतत्रयीम् ॥१०३॥ अर्थ-लगातार सोलह दिन तक पिंगला या किसी एक नासिका में पवन चलता रहे तो ३६० दिनों में से एक बारह कम अर्थात ३६० - १२= ३८ दिन तक वह जीवित रहता है।
वहमाने तथा सप्तदशा नि समीरणे । अहा शतत्रये मृत्युश्चतुविशतिसं ते ॥१०४॥