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मांब, कान, मस्तक तथा अन्य प्रकार से होने वाला कालज्ञान
५३७ अर्थ-यदि लाल को अंगुली से दबाये बिना दोनों कमलों की पंखुड़ियां दिखाई न दे तो सौ दिनों में मृत्यु होती है। अब दो श्लोक द्वारा कान से होने वाला आयुष्यज्ञान कहते है
ध्यात्वा हृद्यष्टपत्राब्ज श्रोत्रे हस्तान-पोड़िते। न श्रू येताग्निनिर्घोषो, यदि स्व. पंचवासरान् ॥१२॥ दश वा पंचदश वा, विति पंचविंशतिम् ।
तदा पंच-चतुस्त्रियेकवर्षे मरणं क्रमात् ॥१२६॥ ___ अर्थ हृदय में आठ पंखुड़ी वाले कमल का चिन्तन करके दोनों हाथों की तर्जनी अंगुलियों को दोनों कानों में डालने पर यदि अपना आग्न-निर्घोष (शब्द) पांच दिन तक सुनाई न दे तो पांच वर्ष, दस दिन तक सुनाई न दे तो चार वर्ष, पन्द्रह दिन तक सुनाई न दे तो तीन वर्ष, बीस दिन तक सुनाई न दे तो दो वर्ष और पच्चीस दिन तक नहीं सुनाई दे तो एक वर्ष में मृत्यु होती है । तथा .
एक-द्वि-त्रि-चतः-पंच-चविंशत्यहःक्षयात् ।
षडादि षोडशदिनान्यान्तराण्यपि शोधयेत् ।। १२७॥ अर्थ-यदि छह दिन से ले कर सोलह दिन तक अगुली से दबाने पर भी कान में अग्नि का शब्द न सुनाई दे तो पांच वर्ष के दिनों में से क्रमशः एक, दो, तीन, चार आदि सोलह चोबीसियों कम करते हुए मृत्यु होती है। वह इस प्रकार-पांच दिन तक कान में शब्द सुनाई न दे तो पांच वर्ष में मृत्यु होती है, यह बात पहले कह गये हैं। उसके बाद छह दिन तक अग्नि का शब्द सुनाई न दे तो पांच वर्ष में २४ दिन कम करना अर्थात् १८०० दिनों में से २४ दिन कम यानी १७७६ दिनों में मृत्यु होती है। सात दिन तक सुनाइ न देने पर १७७६ वनों में से दो चौबीस अर्थात् ४८ दिन कम करने से १७२८ दिन में मृत्यु होती है। आठवें दिन भी नहीं सुनाई दे तो तीन.चोबास-७२ दिन काम करने से १६५६ दिन में मृत्यु होती है । नौ दिन तक सुनाई न दे तो चार चौबोस%६६ दिन कम करने से १५६० दिनों में मृत्यु होती है। दसवें दिन भी सुनाई न दे तो पूर्वोक्त में से पांच चौबोस=१२० विन कम करने से १४४० दिन अर्थात् चार वर्ष में मृत्यु होती है। इसी तरह ग्यारह दिन से सोलह दिन और इक्कीस दिन तक उपर्युक्त चौबीस कम करके मरणकाल का निश्चय करना चाहिए। अब मस्तक से कालज्ञान का निर्णय बताते हैं--
ब्रह्मद्वारे प्रसर्पन्ती, पंचाहं धूममालिकाम् ।
न चेत् पश्येत् तदा शेयो, मत्युः संवत्सरैस्त्रिभिः ।।१२८॥ अर्थ-ब्रह्मरन्ध्र में फैलती हुई (गुरु महाराज के उपदेश से दर्शनीय) धूमरेखा पदि पांच दिन तक दृष्टिगोचर न हो तो तीन वर्ष में मृत्यु होती है। अन्य प्रकार से कालज्ञान छह ग्लोकों द्वारा बताते हैं--
प्रतिपा.बसे काल-चक्रज्ञानाय शौचवान् । आत्मनो दक्षिणं पाणि शुक्लपक्ष प्रकल्पयेत् ॥१२९॥