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इडा, पिंगला और सुषुम्णा से ईष्ट-अनिष्टसूचना का ज्ञान
५२६ दिन-रात चलता रहे तो एक वर्ष में मृत्यु हो जाती है। और यदि चन्द्रनाड़ी उतने दिन चलतो रहे तो रोग उत्पन्न होता है । तथा
मासमेकं रवावेव, वहन् वायुविनिदिशेत् ।
अहोरात्रावधिमत्यु शशांके तु धनक्षयम् ॥७३॥ अर्थ-यदि किसी मनुष्य के एक महीने तक लगातार सूर्यनाड़ी में ही वायु चलता रहे तो उसको एक दिनरात में ही मृत्यु हो जाती है, यदि एक मास तक चन्द्रनाड़ी में पवन चलता रहे तो उसके धन का नाश होता है । तथा
वायुस्त्रिमार्गगः शंसेत् मध्याह्नात् परतो मृतिम् ।
वशाहं तु द्विमार्गस्थः, संक्रान्ती मरणं दिशेत् ॥७४॥ ____ अर्थ-इग, पिंगला और सुषुम्णा इन तीनों नाड़ियों में यदि एकसाथ पवन चलता रहे तो दोपहर के पश्चात् मरण होता है । इडा और पिंगला दोनों नाड़ियों में साथ में वायु चले तो बस दिन में मृत्यु होती है और केवल सुषुम्णा में हो लम्बे समय तक वायु चले तो शीघ्र मरण होता है।
दशाहं तु वहन्निन्दावेवोद्वगरूजे मरुत् ।
इतश्चेतश्च यामापं वहन् लाभार्चनादिकृत् ॥७॥ अर्य · यदि निरंतर बस दिन तक चन्द्रनाड़ी में ही पवन चलता रहे तो उद्वेग और रोग उत्पन्न होता है, और सूर्य तथा चन्द्रनाड़ी में वायु बार-बार बदलता रहे, अर्थात् आधे पहर सूर्यनाड़ी में और आधे पहर चन्द्रनाड़ी में वायु चलता रहे तो लाभ, पूजा, प्रतिष्ठा आदि की प्राप्ति होती है । तथा
विषुवत्समयप्राप्तौ स्पन्देते यस्य चक्षुषी।
अहोरात्रेण जानीयात, तस्य नाशमसंशयम् ॥७६।। अथ-जब दिनरात समान हों, बारह-बारह घण्टे का दिनरात (समान) हो, जरा भी कम या ज्यादा न हो, उसे विषुवतकाल कहते हैं। ऐसे दिन वर्ष में दो ही आते हैं। ऐसे विषुवत्काल में जिसकी आँखें फरकती हैं, उसको एक दिन-रात में अवश्य ही मृत्यु हो जाती है। फरकना भी वायु का विकार है; इसलिए प्रस्तुत प्रसंग का भग नहीं होता। तया
पञ्चातिक्रम्य संक्रान्तोमुखे वायुर्वहन दिशेत् ।
मित्रार्थानी निस्तेजोऽनन् सर्वान्मृति विना ।।७७॥ अर्थ-पवन का एक नाड़ी में से दूसरो नाड़ी में जाना, 'संक्रान्ति' कहलाता है। दिन में लगातार यदि ऐसी पांच संक्रान्तियां बीत जाने के बाद छठो संक्रान्ति के समय मुख से वायु चले तो वह मृत्यु को छोड़ कर मित्र-हानि, धन-हानि, निस्तेज होना, उद्वेग, रोग, देशान्तर-गमन आदि सभी अनर्थ सूचित करता है।