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योगशास्त्र:पंचम प्रकाश
संक्रान्तीः समा , बयोदश समीरणः ।
प्रवहन वामनासायां, रोगोढगादि सूचयेत् ..७८।। अर्थ- यदि पहले कहे अनुसार तेरह संक्रान्तियों तक उल्लघन हो जाने पर वायु वाम नासिका से बहे तो वह रोग, उद्वेग आदि की उत्पत्ति को सूचित करता है । तथा
मार्गशीर्षस्य संक्रान्ति-कालादारभ्य मारुतः ।
वहन पंचाहमाचष्टे वत्सरेऽष्टादशे मृतिम् ।७९॥ अर्थ-मार्गशीर्ष मास के प्रथम दिन से ले कर लगातार पांच दिन तक एक ही नाड़ी में पवन चलता रहे तो उस दिन से अठारहवें वर्ष में मृत्यु होगी। तथा
शरत्संक्रान्तिकालाच्च, पंचाहं मारुतो वहन् ।
ततः पंचदशाब्दानाम् अन्ते मरणमादिशेत् । ८०॥ अर्थ-यदि शरदऋतु की संक्रान्ति से अर्थात् आसोज मास के प्रारंभ से पाँच दिन तक एक ही नाड़ी में पवन चलता रहे तो उस दिन से पन्द्रहवं वर्ष के अन्त में उसकी मृत्यु होगी।
श्रावणादे: समारभ्य, पंचाहमनिलो वहन् । अन्ते द्वादश-वर्षाणां, मरणं परिसूचयेत् ।। ८१॥ वहन ज्येष्ठादिविवसाद, दशाहानि समीरणः । शिनवमवर्षय पर्यन्ते मरणं ध्रुवम् ।।१।। आरभ्य चैत्राद्यदिनात् पंचाहं पवनो वहन् । पर्यन्ते वर्षषट्कस्य, मृत्यु नियतमादिशेत् । ८३॥ आरभ्य माघमासादेः पंचाहानि मरुद् वहन् ।
संवत्सरत्रयस्यान्ते, संसूचर्यात पंचताम् ।।४।। अर्थ- श्रावण महीने के प्रारंभ से पांच दिन तक एक ही नाड़ी में पवन चले तो वह बारहवें वर्ष में मरण का सूचक है। ज्येष्ठ महीने के प्रथम दिन से दस दिन तक एक हो नाडी में वायु चलता रहे तो नौ वर्ष के अन्त में निश्चय ही उसकी मृत्यु होनी चाहिए। चैत्र महीने के प्रथम दिन से पांच दिन तक एक ही नाड़ी में पवन चलता रहे तो छह वर्ष के अन्त में अवश्य मरण होगा। माघ महीने के प्रथम दिन से पांच दिन तक एक ही नाड़ी में वायु चलता रहे तो तीन वर्ष के अन्त में मरण होने का सूचित करता है । तथा
सर्वत्र द्वि-त्रि-चतुरो, वायुश्चेद् दिवसान् बहेत् ।
अब्दभागैस्तु ते शोध्याः , यथावदनुपूर्वशः ।।५।। अर्थ-किसी महीने में पांच दिन तक एक ही नाड़ी में वायु चले तो उतने ही बों में मरण बतलाया है, उस महीने में दो तीन या चार दिन तक यदि एक ही नाड़ी में वायु