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योगशास्त्र : पंचम प्रकाश अर्थ-मन और पवन इन दोनों में से किसी एक का नाश होने पर दूसरे का नाश हो जाता है और एक की प्रवृत्ति होने पर दूसरे की प्रवृत्ति होती है। जब इन दोनों का विनाश होता है, तब इन्द्रिय और बुद्धि के व्यापार का नाश होता है, और इन्द्रिय और बुद्धि के नाम से मोक्ष होता है। अब प्राणायाम के लक्षण और उसके भेद बताते हैं
प्राणायामो गतिच्छेदः, श्वासप्रश्वासयोर्मतः ।
रेचकः पूरकश्चैव, कुम्भकश्चेति स त्रिधा ॥४॥ अर्थ-बाहर की वायु को ग्रहण करना, श्वास है । उदर के कोष्ठ में रहे हुए वायु को बाहर निकालना. निश्वास अथवा प्रश्वास कहलाता है तथा इन दोनों को गति को रोकना, प्राणायाम है । वह रेचक, पूरक और कुमक के भेद से तीन प्रकार का है। अन्य माचार्यों के मत से इसके सात भेद हैं, उसे बताते हैं
प्रत्याहारस्तथा शान्तः, उत्तरश्चाधरस्तथा।
एभि दैश्चतुभिस्तु, सप्तधा कोयते परैः ॥५॥ ___ अर्थ-पूर्वोक्त तीन के साथ में प्रत्याहार, शान्त, उत्तर और अपर यह चार भेव मिलाने से प्राणायाम सात प्रकार का होता है। ऐसा अन्य आचार्य मानते हैं। अब क्रमशः प्रत्येक के लक्षण कहते हैं
यत् कोष्ठादतियत्नेन, नासाब्रह्म-पुराननः ।
बहिः प्रक्षेपणं वायोः स रेचक इति स्मृतः ॥६॥ अर्थ-नासिका और ब्रह्मरन्ध्र तथा मुख के द्वारा कोष्ठ (उदर) में से अत्यन्त प्रयत्नपूर्वक वायु बाहर निकालना, रेचक प्राणायाम कहलाता है।
समाकृष्य यवापानात्, पूरणं स तु पूरकः ।
नाभिपये स्थिरीकृत्य, रोधनं स तु कुम्भकः । ७॥ अर्थ-बाहर के वायुको खींच कर अपान (गुदा) द्वारपर्यन्त कोष्ठ में भर देना 'पूरक प्राणायाम' है, और उसे नाभिकमल में कुम के समान स्थिर करके रोकना 'कुंभक प्राणायाम' कहलाता है। तथा
स्थानात् स्थानान्तरोत्कर्षः, प्रत्याहारः प्रकीर्तितः ।
तानासाऽननद्वारः, निरोधः शान्त उच्यते ॥८॥ अर्थ-नामि मावि स्थान से हृदय आदि स्थान में वायु को ले जाना; अर्थात् पवन को खींच कर एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना 'प्रत्याहार' कहलाता है । तालु, नासिका और मुख के द्वारों से वायु का निरोध करना शान्त' नाम का प्राणायाम है। शान्त और भक में इतना अन्तर है कि कुंभक में पवन नाभिकमल में रोका जाता है, और शान्त