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कौन-से वायु के चलते कौन-सा कार्य सफल पा निष्फल होता है ? कौन-से वायु में कौन-सा कार्य करना चाहिए ? इसे कहते हैं
इन्द्र स्तम्भाविकार्येषु, वरुणं शस्तकर्मसु ।
वायु मलिनलोलेषु, वश्यादौ वह्निमादिशेत् ॥५२॥ अर्थ-जब पुरन्दरवायु बहता हो, तब स्तंमनादि कार्य करने चाहिए। वरणवायु के बहते समय प्रशस्त कार्य करना, पवनवायु के बहते समय मलिन और चपल कार्य करना तथा बहनवायु चलता हो, उस समय वशीकरण आदि कार्य करना चाहिए।'
कार्य के प्रारम्भ में, कार्य के प्रश्न-समय में जो वायु चलता हो, उसका फल चार श्लोकों द्वारा कहते हैं :
छन-चामर-हस्त्यश्वाराम-राज्यादिसंपवम् । मनीषितं फलं वायः, समाचष्टे पुरन्दरः ॥५३॥ रामाराज्यादिसंपूर्णः, पुत्रस्वजनबन्धुभिः । सारेण वस्तुना चापि, योजयेद् वरुणः क्षणात् ॥५४॥ कृषिसेवादिकं सर्वमपि सिद्ध विनश्यति । मृत्युभी, कलहो वैरं, त्रासश्च पवने भवेत् ॥५५॥ भयं शोकं रूजं दुःखं, विघ्नव्यूहपरम्पराम् ।
संसूचयेद् विनाशं च, दहनो दहनात्मकः ॥५६॥ अर्थ- पुरन्दर नाम का वायु जिस समय बहता हो, उस समय छत्र, चामर, हायो, घोड़ा, स्त्री एवं राज्य आदि सम्पत्ति के विषय में कोई प्रश्न करे अथवा स्वयं कार्य आरम्भ करे तो मनोवांछित फल मिलता है। वारुणवायु (जलतत्त्व) बहता हो, तब प्रश्न करे अथवा कार्य आरंभ करे तो उसी समय उसे सम्पूर्ण राज्य, पुत्र, स्वजन-बन्धु और सारभूत उत्तम वस्तु की प्राप्ति होती है । प्रश्न या कार्यारंभ के समय पवन नाम का वायु बहता हो तो खेती सेवा-नौकरी आदि सब कार्य फलदायी हों तो भी वे निष्फल हो जाते हैं; मेहनत व्यर्थ नष्ट हो जाती है और मृत्यु का भय, क्लेश, वर तथा त्रास उत्पन्न होता है। बहन स्वभाव वाला अग्नि नाम का वायु चलता हो, उस समय प्रश्न या कार्यारंभ करे तो वह भय, शोक, रोग, दुःख और विघ्न-समूह को परम्परा और धन-धान्यादि के विनाश का संसूचक है। ___ अब चारों वायु का अतिसूक्ष्म फल कहते हैं .
शशांक-रवि-मार्गेण, वायवो मण्डलेष्वमी।
विशन्तः शुभवाः सर्वे, निष्कामन्ता 'या स्मृता. ॥१७॥ अर्थ-पुरन्दर आदि चारों प्रकार के वायु चन्द्रमार्ग या सूर्यमार्ग अर्थात् बांयी और बाहिनी नाड़ी में हो कर प्रवेश करते हों, तो शुभफलदायक होते हैं और बाहर निकलते हों, तो मशुभफलदायक होते हैं।