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योगशास्त्र : तृतीय प्रकाश
पति तो फलां तरुणी से प्रेम करता है और किसी तरुणी से एकान्त में कहे कि 'तुम्हारा पति बड़ा कामकला में कुशल और प्रौढ़ चेष्टा वाला है, उसका तो मध्यमवय की नारियों पर अनुगग है । अथवा किसी स्त्री से कोई कहे कि तेरा पति गधे के समान अत्यन्तविषयी अथवा कामुक है। अथवा तेरा पति तो नामर्द है।" इस प्रकार की हंसी-मजाक करे अथवा किसी स्त्री के लिए झठी बात बना कर उसके पति से कहे कि तेरी पत्नी मुझे एकान्त में कहती थी कि 'तेरे अतिविषयसेवन से वह बेचारी हैरान हो गई है।' अथवा यों कहे कि 'वह कहती थी- मैं अपने पति को भी रतिक्रीड़ा में थका देती हूं।' अथवा दम्पतियुगल में से किसी स्त्री या पुरुष को मोह या आसक्ति बढ़े उस प्रकार की बात करना अथवा उस स्थिति में एकान्त में अनेक प्रकार की गुप्त बातें या हमी मजाक की बातें करना, जिससे पुरुप को स्त्री पर झूठा शक (बहम) हो जाय अथवा स्त्री को पुरुष पर झूठा भ्रम पैदा हो जाय ; इस प्रकार की भ्रान्तिजनक बातें करना रहस्याभ्याख्यान अतिचार है। जान-बुझ कर दुराग्रहवश झूठ दालने पर तो प्रतभंग हो जाता है। कहा भी है . जानबूझ कर सहसा झा आरोप आदि लगाया जाय तो वहां व्रतभग हो जाता है, और जहाँ बिना उपयोग के, हंसी-मजाक में या विना मोचे-समझे, किसी को बदनाम किया जाय या किसी पर लांछन लगाया जाय, वहां सहसाभ्याख्यान नामक दूसरा अतिचार लगता है। (३) गुह्ममाषणशासनकार्य में कई ऐसी गोपनीय बातें होती है, जो सभी को बताने लायक नहीं होनी. (मंत्रियों को उस गोपनीयता की शपथ भी दिलाई जाती है) उन राज्यादि कार्यसम्बन्धी गुप्त बातो को बिना उपयोग के, सहसा अनजाने में प्रगट कर देना गुह्यभाषण नामक अतिचार है। अथवा इगित या आकृति आदि से जान कर उसके विषय में दूसरे से कहना गलत निर्णय कर लेना-भी गुह्यभाषण है ! जैसे कोई किसी से कहे कि 'अमुक व्यक्ति राज्यविरुद्ध कार्य करता है।' अथवा एक दूसरे की चुगली खा कर परस्पर भिड़ा देना- एक की मुखाकृति और आचरण के आधार पर जरा-सा अभिप्राय जान कर दूसरे को ऐसी युक्ति से कहना जिससे कि उन दोनों की परस्पर प्रीति टूट जाय- यह भी गुह्यभापण नामक तृतीय अतिचार है। (४) विश्वस्त व्यक्ति की गुप्त बात प्रगट करना, चौथा अतिचार है। किसी मित्र, अपनी स्त्री या किमी विश्वमनीय व्यक्ति ने कोई गुप्त बात किसी पर भगेमा रख कर कही हो, और वह उग गुप्त बात को जहां-तहाँ प्रगट कर देता है तो उसे यह अतिचार लगता है। हालांकि जैसी बान किसी ने कही है उसी बान को वह यथार्थरूप से दुहरा देता है, इसलिए बाह्य दृष्टि से असत्य न होने स आचाररूप नहीं मालूम देती ; लेकिन स्त्री-पुरुष की या मित्र अथवा विश्वस्त व्यक्ति की गुप्त हकीकत प्रगट हो जान से कई दफा वह लज्जावश आत्महत्या कर बैठता है। इस प्रकार के घोर अनर्थ का कारण होने से परमाथं स वह वचन असत्य ही है । कदाचित् अनजाने में या विश्वस्त समझ कर कह देने पर व्रत के आंशिक भंग होने से अतिचार है। किसी की गुप्त बात, गुप्तमंत्रणा और गुप्त आकार आदि प्रगट करने का अधिकार न होने पर भी दूसरों के सामने प्रगट कर देता है अथवा स्वयं मंत्रणा करके उम गुप्नमंत्रणा को प्रगट कर देता है
और दो प्रेमी व्यक्तियों के बीच फूट डलवा देता है, वहां चौथा अतिचार होता है। (५) कूटलेख --झूठे लेख लिखना, झूठे दस्तावेज बनाना, दूसरे के हस्ताक्षर जैसे अक्षर बता कर लिखना अथवा नकली हस्ताक्षर कर देना, पांचवां अतिचार है । यद्यपि झूठे लेख लिखने आदि में वचन से असत्य नही बोला जाता, न बुलवाया जाता है । तथापि ऐसा करना असत्य का ही प्रकार है, सत्यव्रत का आंगिक भग है, इसलिए अतिचार है । जहां सहसा आवेश में आ कर वाणी से मौन रख कर हाथ से झूठी बात लिखी जाती है, वहां वन की मर्यादा के अतिक्रमादि के कारण अतिचार लगता है ; अथवा यों समझ कर कि मेरे तो असत्य बोलने का नियम है, यह तो लेखन है, इससे मेरे व्रत में कोई आपत्ति नही आती; ऐसी समझ से