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धर्मस्वाख्यातभावना में प्रयुक्त धर्म अन्यमतीय ग्रन्थों में नहीं
४८t गोमेध, अश्वमेघ आदि विभिन्न प्राणिवधमूलक यह करने वाले एवं प्राणिघात करने-कराने वाले यात्रिक में धर्म कैसे हो सकता है? अश्रद्धेय, असत्य एवं परस्पर विरोधी वस्तु का प्रलाप करने वाले पुराण और उसके रचयिता पौराणिक का यह कौन-सा धर्म है ? गलत व्यवस्था से दूसरे के द्रव्य को हरण कर लेने वाले, मिट्टी और जल आदि को ही शौचधर्म कहने वाले स्मातं आदि के जीवन में धर्म कैसे हो सकता है? नहीं देना चाहने वाले यजमान से भी सर्वस्व लेना चाहने वाले, धन के लिए प्राणहरण करने वाले ब्राह्मण की यह अकिंचनता कैसे कही जा सकती है ? रातदिन मुह साफ करके खाने वाले, किन्तु भक्ष्यअभक्ष्य के विवेक से रहित बौद्धधर्मियों का तपधर्म ही कहाँ रहा? 'कोमल शय्या पर सोना, प्रातःकाल मधुररस का पान करना, दोपहर को भोजन करना, शाम को ठडा पानी पीना और आधी रात को किशमिश और शक्कर खाना चाहिए। इस प्रकार इच्छानुसार खाने-पीने में ही शाक्य (बौद्ध) ने सुन्दर धर्म बताया है।' जरा-से अपराध पर मणभर में शाप देने वाले लौकिक ऋषियों में समाधर्म का जरा भी अंश नहीं होता । 'हमारी ब्राह्मण-जाति ही सर्वोत्तम है।' इस प्रकार के जातिमद में मत्त, दुर्व्यवहार वाले एवं इसी प्रकार के चित्त वाले चार आश्रमों में रहने वाले ब्राह्मणों में मार्दवधर्म कहां से हो सकता है ? हृदय में दम्भ के परिणाम चल रहे हों और बाहर से बकवृत्ति धारण करने वाले पाखण्डव्रतधारकों में सरलता का अंशमात्र भी कहां से हो सकता है ? पत्नी, घर, पुत्रादि परिवार और सदैव परिग्रह में रचेपचे लोभ के एकमात्र कुलगृह-ब्राह्मण में मुक्ति (निर्लोभता) धर्म भी कैसे हो सकता है ?
इसलिए राग, द्वेष या मोह से रहित केवलज्ञानी अरिहन्त भगवान् की इस धर्मस्वाख्यातभावना का चिन्तन करना चाहिए । मिथ्यावचन राग, द्वेष या मोह-अज्ञान के कारण ही निकलते हैं । इन दोषों का वीतराग में अभाव होने से अरिहन्त मिथ्यावादी कैसे हो सकते हैं ? जो रागद्वेषादि से कलुषित चित्त वाले हैं, उनके मुख से सत्य वचन का निकलना सम्भव नहीं है । वे इस तरह यज्ञ कराना, हवन कराना, इत्यादि तथा अनेक बावड़ी, कुए, तालाब, सरोवर आदि ईष्टापूर्त कार्य करके पशुओं का घात करा कर स्वर्गलोक के सख बताने वाले. ब्राह्मणों को भोजन कराने से पितरों की तप्ति कराने की। घी की योनि आदि करवा कर तदरूप प्रायश्चित्त कराने वाले. पांच आपत्तियों के कारण स्त्रियों। विवाह जायज बताने वाले, जिनके पुत्र न होता हो, ऐसी स्त्रियों के लिए क्षेत्रज अपत्य (दूसरे पुरुष के साथ नियोग से उत्पन्न) का कथन करने वाले, दूषित स्त्रियों की रज से शुद्धि बताने वाले, कल्याणबुद्धि से यज्ञ में मारे हुए बकरे आदि से आजीविका चलाने वाले, सौत्रामणि यज्ञ में सात पीढ़ी तक मदिरापान कराने वाले, विष्ठाभक्षण करने वाली गाय के स्पर्श से पवित्रता मानने वाले, जलादि से स्नान करने मात्र से पापशुद्धि बताने वाले, बड़, पीपल, आंवले आदि वृक्षों की पूजा करने-कराने वाले, अग्नि में घी आदि के होमने से देवदेवियों की प्रसन्नता मानने वाले ; घरती पर गाय दूहने से अमंगल की शान्ति मानने वाले ; स्त्रियों को नीचा दिखाने की तरह, उनके लिए वैसे ही व्रत और धर्म का उपदेश देने वाले, तथा जटाधारण करने, कान छिदाने, शरीर पर भस्म रमाने. लंगोट लगाने. आक. घतरा. विल्वपत्र. तलसी मादि से देवपूजा करने वाले ; नितम्ब बजाते हुए, नृत्य, गीत आदि बार-बार करते हुए, मुंह से बाजे की-सी आवाज निकालते हुए और असत्यभाषा बोलते हुए मुनि देवों और लोगों को छलते हुए, व्रतमंग कर दासत्व और दासीत्व की इच्छा करके बार-बार पाशुपतव्रत ग्रहण करने और त्यागने वाले हैं; औषषि बादि प्रयोग में जूको मारते हैं, मनुष्य की हड्डी के आभूषण धारण करते हैं, त्रिशूल और बाटे के पाये को ढोए फिरते हैं, बप्पर में भोजन करते हैं; घंटा, नुपूर धारण करते हैं। मदिरा, मांस और