________________
कषापविजय से पहले इद्रियविजय आवश्यक है वीर लोग जब किले की एक ईट खींच कर खिसका देते हैं तो उसके बाद कौन उसे खण्डित नहीं कर देते ? फिर ता कमजोर आदमी भी उसे नष्टभ्रष्ट कर देते हैं।
व्याख्या-जो आत्मा इन्द्रियों पर विजय प्राप्त नहीं पर मकना, उमे कषाय भी दबा देते हैं; वे उम पर चढ़ बैठते हैं। इसलिए कपायों को जीतने के लिए इन्द्रियो पर विजय पाने का पहले उपदेश दिया है। इसके विपरीत, जो इन्द्रिय विजय का पगकम नहीं करता : वह इन्द्रियों के द्वारा कपायों के अधीन हो कर नरकगामी बनता है। यहां का होती है कि कोई व्यक्ति इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करने में असमर्थ हो तो उसे इन्द्रियविजय में रुकावट आ मकती है, कपायविजय में रुकावट आने का नो अवसर ही कैमे आ मकना है ? इमी का ममाधान एक दृष्टाल द्वारा करने हैं-"एक बहादुर
कने की एक ईट खीच लेता है तो उसके दुर्वल माथो में टपाटप एक-एन. ईट खीच कर उस किले को ढहा देते है, हमी प्रकार इन्द्रिगो मे पराजित व्यनि, माधारण गनुष्य के गमान कषायों में तुरन्त पराजित हो जाता है। क्योकि क.पाय प्रायः इन्द्रियों काही अनमरण करते हैं। इगला जिसने इन्द्रियाँ वश में नही की ; वह कषायों से पगभन हो कर नरक में जाना है, तथा हम लो व इस जन्म में अपना नुकसान कर बैठना है। इसेही नहते है
कुलघाताय पाताय, बन्धाय च वधाय च ।
अनिजितानि जायन्ते, करणानि शरीरिणाम् ॥२७॥ अर्थ-अविजित (काबू में नहीं की हुई) इन्द्रियाँ शरीरधारियों के कुल को नष्ट कराने वाली, पतन, बन्धन और वध कराने वाली होती हैं।
व्याख्या - इन्द्रियों का दमन न करने से ये उच्छ खन इन्द्रियां इसी जन्म मे वंश का विनाश, राज्यभ्रष्टता कारागार के बन्धन और प्राणनाण को न्यौता दे देनी हैं। रावण इन्द्रियो को वश न कर सका, उमने परम्त्री के साथ रमण करने की इच्छा की: इम कारण गम-लक्ष्मण ने उसके कुल का विनाश कर दिया था। यह दृष्टान्त पहले बता चुके हैं । इन्द्रियाँ वश में न होने से सुदामराजा के समान शासक राज्यच्युत या पतित हो जाता है।
एक नगर में सुदामराजा राज्य करता था । उसे अलग-अलग किस्म का मांस खाने का बहुत शौक था । वह अत्यन्त आमक्तिपूर्वक मांस खाना और अपने आप में बहुत खुश रहता था। एक दिन उसके रमोइए ने मांस पका कर रखा था, कि जरा से इधर-उधर होते ही उसे बिल्ली चट कर गई। नगर के श्रद्धालु श्रावकों ने राजा को प्रसन्न करके उस दिन अमारिपटह की घोपणा करवाई थी; इसलिए उस दिन किसी जीव का वध न होने में कहीं किसो प्रकार का मांस न मिला । अतः राजा की नाराजगी के डर से ग्मोश्य ने किसी बालक को लाकर उमका मांस पकाया और राजा को खिला कर संतुष्ट किया । राजा को वह मांस बहत स्वादिष्ट लगा. अन. उसने एकांत में ले जा कर रमोइये को शपथ दिला कर पूछा तो रसोईये ने सारी बात सच-सच कह दी। गजा को अब मनुष्य के मास खाने की चाट लग गई। उसने नगरभर मे जितने भी बालक थे, उन्हें पकड़ लाने के लिए जगह-जगह सेवकों को तैनात कर दिया। नगरनिवासियों को इस बात का बात का पता लगा तो उन्होंने मत्री, गज्याधिकारी