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अनित्यभावना और अशरणभावना का स्वरूप
जर्जरित कर देता है । यौवनवय में जो कामिनियां काम की इच्छा से तुम्हारी अभिलाषा करती थीं. वे वृद्धावस्था में तुम पर थूकती हैं, तुम्हारे पास भी नहीं फटकतीं। जिस धनवानों ने बहुत ही क्लेशपूर्वक वह कमाया, उसे बिना खर्च किये सुरक्षित रखा, उनका वह धन भी क्षणभर में नष्ट हो जाता है । विद्वानों ने धन को पानी के बुलबुले की अथका बिजली के प्रकाश की उपमा दी है ! जैसे ये चीजें देखते ही देखते नष्ट हो जाती हैं, वैसे ही धन नष्ट हो जाता है। मित्रों, बन्धुओं और सगेसम्बन्धियों के संयोग के साथ भी वियोग जुड़ा हुआ है। इस प्रकार सदा अनित्यता का विचार करने वाला पुत्र की मृत्यु के समय शोक नहीं करता । नित्यता के ग्रह-भूत से ग्रस्त मूढ़ मनुष्य ही मिट्टी का बर्तन टूटने पर रोता है । इसलिए इस जगत् में केवल देहधारियों का शरीर, धन, यौवन या बन्धु-बान्धव ही अनित्य नहीं हैं, अपितु सचेतन-अचेतन सारा ही विश्व अनित्य है । सन्तपुरुष कहते हैं एकमात्र धर्म ही नित्य है।" अब इस अनित्यभावना का उपसंहार करते हुए कहते हैं
इनित्यं जगद्वृत्तं स्थिरचित्तः प्रतिक्षणम् ।
तृष्णाकृष्णाहिमंत्राय निर्ममत्वाय चिन्तयेत् ॥६०॥ अर्थ- इस प्रकार स्थिरचित्त से प्रतिक्षण तृष्णारूपी काले भुजग को वश करने के मंत्र के समान निर्ममत्वभाव को जगाने के लिए जगत् के अनित्यस्वरूप का चिन्तन करना चाहिए। अब अशरणभावना के सम्बन्ध में कहते हैं
इन्द्रोपेन्द्रादयोऽप्येते यन्मृत्योर्यान्ति गोचरम् ।
अहो तदन्तकातंके कः शरण्यः शरीरिणाम् ? ॥६२॥ अर्थ-अहो ! जब इन्द्र, उपेन्द्र, आदि देव, वासुदेव, चक्रवर्ती आदि मनुष्य भी मृत्यु का विषय बन जाते हैं ; तब मृत्यु के आतंक के समय जीवों को शरण देने वाला कौन है ? मृत्यु के समय इन्द्र को भी कोई रक्षा नहीं कर सकता।
पितुर्मातुः स्वसुर्धातुस्तनयानां च पश्यताम् ।
अवाणो नीयते जन्तुः कर्मभिर्यमसद्मनि ॥२॥ अर्थ---पिता, माता, बहन, भाई और पुत्र आदि स्वजनों के देखते ही देखते कर्म अत्राण-शरणविहीन प्राणी को चारगतिरूप यमराज के सदन में ले जाते हैं । उस समय कोई भी उसको रक्षा नहीं कर सकता। वास्तव में जीव अपने कर्मानुसार चतुर्गतिरूप संसार मेंविविध गतियों व योनियों में जाता है।
शोचन्ति स्वजनान, नीयमानान् स्वकर्मभिः ।
नेष्यमाणं तु शोचन्ति नात्मानं मूढबुद्धयः ॥६३॥ अर्थ-मूढबुद्धि लोग अपने कर्मों के द्वारा मृत्यु के द्वार पर ले जाए जाते हुए स्वजनों के लिए शोक करते हैं । परन्तु वे मूर्ख यों सोच कर अपने लिए शोक नहीं करते कि हम भी भविष्य में एक दिन मौत का शिकार बन जाएंगे।