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योगशास्त्र : तृतीय प्रकाश
शान्ति का योग होने से, स्वयं शान्ति स्वरूप होने से और दूसरे के लिए शान्तिदाता होने से शान्तिनाथ नाम हुआ । और प्रभु गर्भ में थे तब उनके प्रभाव से देश में उत्पन्न हुई महामारी आदि उपद्रव की शान्ति होने से पुत्र का नाम शान्ति रखा ( १७ ) कुन्थुनाथ कु अर्थात् पृथ्वी, उसमें रहने वाले होने से निरुक्त अर्थ कुन्थु हुआ । प्रभु जब गर्भ में आये थे, तब उनके प्रभाव से माता ने रत्नो के कुन्थु यानी ढेर को देखा था, इससे उनका नाम कुन्थुनाथ रखा (१८) अरनाथ - सर्वोत्तम महा सात्त्विक, कुल की समृद्धि के लिए उत्पन्न हुए, अतः उनका नाम वृद्ध पुरुषों ने 'अर' रखा है और गर्भ के प्रभाव से माता ने स्वप्न में रत्नों का अर अर्थात् आरा देखा था, इससे उनके नाम 'अर' रखा (१६) मल्लिनाथ- परिषह आदि मल्लों की जीतने वाले; निरुक्त के अनुसार मल्लि का यह अर्थ किया गया है तथा भगवान् जब गर्भ मे थे तब माता को छह ऋतुओं के फूलों की सुगन्धमय मालाओं की शय्या में सोने का दोहद उत्पन्न हुआ था । जिसे देवता ने पूर्ण किया। इससे उनका नाम 'मल्लि' रखा (२०) मुनिसुव्रतस्वामी जगत् की त्रिकाल - अवस्था को जाने अथवा उस पर मनन करे उसे मुनि कहते है ; "मने बेतौ चास्य वा उणादि ६१२, व्याकरण के इस सूत्रानुसार मन् धातु के इ प्रत्यय लग कर उपान्त्य अ को उ होने से 'मुनि' शब्द बना तथा सुन्दर व्रत वाले होने से सुव्रत हुआ । इस तरह मुनिसुव्रत शब्द निष्पन्न हुआ । तथा भगवान् जब गभ में आये, तब उनके प्रभाव से माता को मुनि के समान सुव्रत पालन की इच्छा हुई, इससे उनका नाम मुनिसुव्रत रखा (२१) नमिनाथ परिषह और उपसर्ग को नमाने ( हराने) वाले होने से नमि कहलाये, 'नमेस्तु वा' उणादि ६१३ सूत्र के द्वारा विकल्प मे उपान्त्य में इकार करने से नमि रूप बनता है । जब गर्म थे, तब उनके प्रभाव से नगर पर चढ़ कर आया हुआ शत्रुराजा भी नम ( झुक गया, इस कारण उनका नाम 'नमि' रखा । (२२) नेमिनाथ चक्र की वर्तुलाकार नेमि के समान धर्मचक्र को चलाने बाले और गर्म के प्रभाव से माता ने रिष्टरत्नों का महानेमि ( गोलाकार चक्र ) स्वप्न में देखा था, इससे रिष्टनेमि तथा पूर्वदिशा के लिए जैसे अपश्चिम शब्द का प्रयोग किया जाता है, वैसे ही वहाँ निषेधवाचक 'अ' लगाने से 'अरिष्टनेमि नाम रखा । ( २ ) पार्श्वनाथ - जो सभी भावों को देखता है, वह पार्श्व है, यह निरुक्त अर्थ है, तथा प्रभु जब गर्भ में थे, तब उनके प्रभाव से माता अधकार में सर्प देखा था यह गर्भ का प्रभाव है, ऐसा जान कर पश्यति अर्थात् दिखाई दे वह पाश्वं है, तथा पार्श्व नाम क बंयावृत्य (सेवा) करने वाले यक्ष के नाथ होने से पार्श्वनाथ नाम पड़ा । भीमसेन को भीम कहा जाता है, कैसे पार्श्वनाथ को पार्श्व भी कहा जाता है । (२४) वर्धमानस्वामी - जब से उत्पन्न हुए तब सज्ञान आदि गुणों में वृद्धि की अथवा भगवान् जब माता से गर्भ में आये थे, तब उनके ज्ञाति, कुल, घन, धान्य आदि समृद्धि में वृद्धि होने लगी, इससे पुत्र का नाम वर्धमान रखा । आगे चल कर इनका अतुल पराक्रम देख कर देवों ने 'महावीर' नाम रखा । नामों के अर्थ वाली श्री भद्रबाहुस्वामी रचित यहाँ बारह गाथाएं अंकित हैं, जिनका अर्थ ऊपर कहे हुए अर्थ में आजाने से यहां पर दुबारा नहीं लिखते ।
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इस तरह चौबीस तीर्थंकर भगवान् के नामपूर्वक कीर्तन करके अब चित्त की शुद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं -
एवं मए अभित्युआ, बिहअरयमला पहीणबरमरणा । चवीस पि जिवरा, तित्थयरा मे पसीवंतु ॥ ५ ॥
इस प्रकार मेरे द्वारा नामपूर्वक स्तुति किए गए, कर्मरूपी मल से रहित और जरा और मरण से मुक्त चौबीस जिनवर श्री तीर्थंकरदेव मुझ पर प्रसन्न हों ||५||