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प्रमादाचरणरूप अनर्थदण्ड का त्याग एवं सामायिकग्रत का लक्षण
२७५ मद्य आदि बहुत मिलता है, उत्तरप्रदेश में लोग बड़े शूरवीर हैं, वहां घोड़े तेजतर्रार होते हैं, गेहूं अधिक पदा होता है, केसर आदि सुलभ है । वहां किशमिश, दाडिम, कथा आदि फल बहुत मधुर होते हैं ; पश्चिमदेश के बने हुए कपड़े कोमल व सुहावने होते हैं ; वहां ईख बहुत मिलती है ; वहां का पानी बहुत ठंडा होता है; इत्यादि प्रकार मे गपशप लगाना। राजकया-जैसे कि 'हमारा राजा बहादूर है। गौड देश के राजा के पास बहुत धन है । गौड़देश के राजा के पास हाथी बहुत हैं, तुर्किस्तान के राजा के पास तुर्की घोड़े बहुत हैं; इत्यादि । इस प्रकार दुनियाभर की गप्पें हांकना राजकथा है। इसी प्रकार खाद्य पदार्थों के सम्बन्ध में प्रतिबूल कथा करना भी सवकी सब विकथा हैं । रोग आदि या मार्ग के परिश्रम के सिवाय सारी रात सोते रहना प्रमाद है । रोग या मार्ग को थकान के कारण सोना प्रमादाचरण नहीं कहलाता । बुद्धिशाली श्र
प्रमादाचरणों का त्याग कर । प्रमादाचरण के और भी प्रकार बताते हैं .. मद्य, विषय, कपाय, निन्दा, विकथा ये पांच प्रकार के प्रमाद हैं। ये पांचों प्रमाद जीव को संसार में भटकाते है। इस तरह पांचों प्रमादों का विस्तार से वर्णन किया । अब स्थान-विशेष में प्रमाद के त्याग के सम्बन्ध में कहते हैं
विलास-हास-निष्ठ्यूत-निद्रा-कलह-दुष्कथाः ।
जिनेन्द्र-भवनस्यान्तराहारं च चतुर्विधम् ।।८१॥ अर्थ जिनालय में विलास, हास्य, थूकना, निद्रा, कलह, दुष्कथा और चारों प्रकार के आहार का त्याग करना चाहिए।
व्याख्या-जिनभवन में कामचेष्टा या भोगविलास करने, ठहाके मार कर हंसने, थूकने, मोने, लड़ाई-झगड़ा करने, चोर, परस्त्री आदि की कथा करने एवं अशन-पान-खाद्य-स्वाद्य-रूप चार प्रकार के आहार करने का त्याग करना चाहिए । ये सभी कार्य प्रमादाचरणरूप हैं । श्रावक इन्हें छोड़ दे। इनमें चावल आदि अन्न, मूग, रात्त पीने के पदार्थ, मोदक, खीर, सूरण आदि कन्द और मालपूए आदि अशन हैं । इसे ही कहते है- चावल, सत्तू मूग, ज्वार, पकाया हुआ भोजन, खीर, सूरण और पूए ये सभी अशनरूप आहार हैं । सौवीर, कांजी, जौ आदि धान्य की मदिरा, शर्बत आदि और सभी प्रकार के पेयपदार्थ तथा फलों का रस पानरूप आहार कहलाता है। भुना हुआ, सेका हुआ सूखा धान्य, गुड़-पापड़ी या तिलपट्टी, खजूर, नारियल, किशमिश, ककड़ी, आम, अंगूर, अनार, मौसमी, सतरा आदि अनेक प्रकार के फल खाद्यरूप आहार के अन्तर्गत समझना ; दंतन या दांतमंजन, पान (ताम्बूल) तुलसिका, मुलहठी, अजवाइन, सौंफ, पीपरामूल, सोंठ, कालीमिर्च, जीरा, हल्दी, बहेड़ा, आंवला आदि खाद्यरूप आहार है। इस प्रकार तीन गुणवत पूर्ण हुए।
___अब त्रार शिक्षाव्रतों का वर्णन करते हैं। उसके ४ प्रकार हैं । सामायिक, देशावकाशिक, पोष. घोपवास और अतिथि-संविभाग। उसमे प्रथम सामायिक नामक शिक्षावत में सामायिक के स्वरूप वर्णन करते हैं
त्यक्तातरौद्रध्यानस्त्यक्त-सावद्यकर्मणः ।
मुहूर्त समता या तां विदुः सामायिक-व्रतम् ॥२॥ अर्थ--आर्त और रोद्रध्यान का त्याग करके मर्वप्रकार के पाप-व्यापारों का त्याग कर एक मुहूर्त तक समता धारण करने को महापुरुषों ने सामायिकवत कहा है।