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योगशास्त्र : द्वितीय प्रकाश रुक्मिणी के साथ विवाह किया था, वैसे ही राजा ने रूपवती मंडिकभगिनी के साथ विवाह किया। फिर राजा ने मंडिक को महाप्रधान पद दे दिया। समुद्र के अन्तस्तल के समान राजाओं के अन्तस्तल को कोन जान सकता है ? अब राजा मंडिक चोर की बहन द्वारा रोजाना वस्त्र, आभषण आदि उसके पास से मंगवाता था। 'धूर्त आदमी से ही धूर्त ठगा जाता है। धीरे-धीरे राजा ने जब बहुत-सा धन मंगवा लिया तो एक दिन अपनी पत्नी से पूछा-'प्रिये ! अब तुम्हारे भाई के पास कितना धन और है ?' मंडिकभगिनी ने कहा-'उसके पाम इतना ही धन था। क्योंकि अपने प्रियतम से छिपाने को कुछ भी नहीं होता।' इसके पश्चात् कठोर आदेश वाले राजा ने अनेक प्रकार की यातनाएं दे कर उसे मरवा डाला।
अतः चोरी का बुरा फल इस जन्म में भी किसी भी प्रकार से मिलता है; ऐसा समझ कर समझदार व्यक्ति को चोरी से सदा बचना चाहिए।
रोहिणेय चोर से सत बना अमरावती को शोभा को मात करने वाले राजगृह नगर में अनेक राजाओं द्वारा सेवित श्रेणिक राजा राज्य करता था । कृष्ण के बुद्धिशाली पुत्र प्रद्युम्नकुमार की तरह उस राजा के नीतिपराक्रमशाली एक पुत्र था ! नाम था-अभयकुमार । उन दिनों वभारगिरि की गुफा में साक्षात् रौद्ररस-सा मूर्तिमान लोहख़र नामक एक नामी चोर रहता था। राजगृह के निवासी नरनारी जब किसी उत्सव आदि में चले जाते, तब वह पीछे से चुपचाप पिशाच के समान जा कर उपद्रव मचाता और वहां से धन चुरा लाता; नगर को तो वह अपना भंडार या घर ही समझता था। किसी भी सुन्दर स्त्री को देखते ही उससे बलात्कार करता था। उसे केवल चोरी के व्यवसाय की लगन थी और किसी भी आजीविका में उसका मन नहीं लगता था । सच है, मांसाहारी को मांस के सिवाय अन्य किसी भोजन से तृप्ति नहीं होती।' उसकी पत्नी का नाम रोहिणी था। अपने ही रूप और व्यवहार के समान उसके एक पुत्र हुआ, जिसका नाम रखा गया-रोहिणेय । मृत्यु के समय पिता ने उसे बुला कर कहा-''बेटा ! मैं जो कुछ कहूंगा, उसके अनुसार करने का वचन दो तो मैं तुम्हें एक बात कहूं !" उसने कहा- 'पिताजी ! जैसा आप कहेंगे, तदनुसार मैं अवश्य करूंगा। इस संसार में पिता की आज्ञा का उल्लंघन भला कौन करेगा ?" पुत्र के कथन पर से लोहखुर को बड़ी खुशी हुई। उसके सिर पर हाथ फिराते हुए लोहखुर ने निष्ठुरतापूर्वक कहा-'देख ! देवताओं के द्वारा निर्मित समवसरण में महावीर धर्मोपदेश देते हैं। उनकी वाणी कदापि मत सुनना। इसके मिवाय तुम जो कुछ भी करना चाहो, करने में स्वतंत्र हो।' यों अपने लड़के को पक्का करके लोहख़र मर गया। पिता की मरणोत्तर क्रिया करने के बाद रोहिणेय अपने पिता से भी बढ़ कर निकला । वह भी दिन-रान चोरी करने लगा, मानो दूसरा ही लोहखुर हो। अपने प्राणों की परवाह न करके पिता की आज्ञा का पालन करते हुए, दासीपुत्र की तरह वह राजगृह नगर में चोरियां करता था।
एक बार ग्रामों और नगरों में क्रमशः बिहार करते हुए १४ हजार साधुओं से सम्पन्न अन्तिम तीर्थकर भगवान महावीर स्वामी स्वर्णकमल पर चरणकमलों को स्थापित करते हुए राजगृह नगर पधारे । चारों निकायों के देव-देवियों ने मिल कर समवसरण की रचना की।
एक दिन प्रभु अपनी योजनगामिनी सर्वभाषाओं में परिवर्तित होने वाली पीयूषषिणीवाणी में