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रावण द्वारा सीता का हरण और राम से विराध का मिलन
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जाते ही रावण झटपट विमान से नीचे उतरा और महसा सीता को पकड़ कर मैं तेरा हरण करने वाला रावण हूं' यों कहते हुए जबर्दस्ती पुष्पक विमान में बिठा कर ले उड़ा।
इस अप्रत्याशित घटना से सीता हक्कोबक्की हो गई। असहाय सीता विलाप करने लगी"हे नाथ ! हे राम ! हा वत्स लक्ष्मण ! ओ पिताजी ! अय महाभुजा वाले भाई भामण्डल ! तुम्हारी सीता को यह उसी तरह हरण किए लिये जा रहा है, जिस तरह कोआ बलि को ले कर आकाश में उड़ जाता है।" सीता इस प्रकार उच्चस्वर मे रोने लगी, मानो आकाशमंडल को रुला दिया हो । इतने में जटायुपक्षी भी विमान का पीछा करता हुआ तेजी से उड़ा। विमान के निकट आ कर उसने कहा"बेटी ! डर मन ! मैं आ पहुंचा हूं। रावण को फटकारने हुए वह बोला -' अर राक्षस ! तू कहां इस पवित्र नारी को लिए जा रहा है ? खड़ा रहे।' भामण्डल का अनुगामी विद्याधरों का कोई अगुआ भी रावण को ललकारना हुआ निरस्कारपूर्वक बोला-- 'अरे चोर ! ठहर जा ! अभी तरी खबर लेते हैं।" जटायुपक्षी गवण की छाती पर अपने घर के नीखे नखों से मारने लगा।' रावण ने गीध से कहा"बूढे गीष | क्या तू अग्नी जिंदगी से ऊब गया है, मालूम होता है, तरी मोत निकट आ गई है।' यों कहते हए चन्द्रहाम तलवार से उमके पंख काट डाले। वह छटपटाता हुआ, नीचे गिर गया और वहीं उसके प्राणपखेरू उड़ गए। उस विद्याधर को विद्या का रावण ने हरण कर लिया, इसलिए वह भी पखकटे पक्षी की तरह जमीन पर औंधे मुह गिर पड़ा। इस प्रकार अपने को बचाता हुआ रावण सीता को ले कर लंका पहुंचा और वहां अपनी अशोकवाटिका में उसे रखा । सीता को प्रलोभन द कर अपन वश में करने के लिए उसने त्रिजटा राक्षसी भेजी।
इधर लक्ष्मण शत्रु को मार कर वापिम लौट रहा था कि सामने से आते हुए राम उसे मिले । लक्ष्मण ने पूछा--'भैया ! सीता को अकेली छोड़ कर आप यहां क्यों आ गए ?' राम न कहा-"मैं तेरे द्वारा किये हुए संकटसूचक सिंहनाद को सुन कर तत्काल दौड़ा हुमा आ रहा हूं।' लक्ष्मण बोला'भैया ! मैंने तो कोई सिंहनाद नहीं किया। मालूम होता है, किसी और ने नकली सिंहनाद करके हमें धोखा दिया है । नि:संदेह किसी धूर्त ने आयंसती का हरण करने के लिए ही यह प्रपंच रचा है।'' राम भी-'ठीक है. ठीक है'यों कह कर लक्ष्मण के साथ ही अपने आश्रम पर वापिस लौट आए । पर सीता को वहां नहीं देख कर उन्हें वजाघात-सा लगा। 'हे सीते! तू कहाँ गई ?' यों विलाप करते हए राम धड़ाम से मूछित होकर भूमि पर गिर पड़े। कुछ ही देर में जब होश आया तो लक्ष्मण ने कहा"मैया ! असहाय अवस्था में विपत्ति आ पड़ने पर रोना व्यर्थ है, अब तो हमें पुरुषार्थ करना चाहिए। यही सच्चा उपाय है, विपत्ति-निवारण का।" उसो समय एक पुरुष ने मा कर दोनों को नमस्कार किया
और पूछने पर अपनी घटना बताते हुए कहने लगा- मैं पाताललंकाधिपति चन्द्रोदय का पुत्र हूँ। मेरे पिता को मार कर रावण ने उनके स्थान बर को राजा बनाया है, मानो, घोड़े का स्थान गधे को दिया गया है । उस समय मेरी गर्भवती माता ने वहां से भाग कर एक सुरक्षित स्थान में शरण ली थी और वहीं मुझं जन्म दिया । एक दिन माताजी को किसी मुनि ने कहा--"जब खर आदि को दशरथपुत्र राम मारेंगे, तभी तुम्हारे पुत्र को पाताललंका को राजगद्दी सौंप कर राजा बनाया जायगा। इसमें जरा भी संशय मत करना । अतः मैं आपको ढूंढता हुआ, यहाँ आ कर आपसे मिला हूँ। आज से मैं आपका आश्रय ले रहा हूं। मुझे आप मेरे पिता के वैरी का वध करने के बदले सरीदा हुआ सेवक समझे।' इस पर महाभुजा वाले श्रीराम उसे साथ ले कर पाताललंका का राज्य दिलाने हेतु चले । "समयह स्वामी अपने