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योगशास्त्र : तृतीय प्रकाश
इसी के सम्बन्ध में बता रहे हैं
धर्मविन्नव मुंजीत कदाचन दिनात्यये ।
बाद्या अपि निशाभोज्यं यदभोज्यं प्रचक्षते ॥५४॥ अर्थ-जिनशासन को न मानने वाले अन्यमतीय लोग भी रात्रिभोजन को अभोज्य कहते हैं । अतः धर्मज्ञ श्रावक सूर्य अस्त हो जाने के बाद कदापि भोजन न करे। सूर्यास्त हो जाने के बाद रात्रिभोजन का अन्यमतीय शास्त्रों में इस प्रकार निषेध है
त्रयीतेजोमयो भानुरिति वेदविदो विदुः ।
तत्करः पूतमखिलं शुभं कर्म समाचरेत् ॥५५॥ अर्थ-वेद के ज्ञाता सूर्य को ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद इस वेदत्रयी के तेज से ओत-प्रोत मानते हैं। इसलिए सूर्य का एक नाम 'त्रयोतनु' भी है । अतः उस सूर्य की किरणों से पवित्र हुए शुभकार्यों को ही करना चाहिए। उनके अभाव में शुभ कार्य नहीं करे । इसी बात को आगे कहते हैं
नैवाहुतिन च स्नानं, न श्राद्धं देवताऽर्चनम् ।
दानं वाऽविहितं रात्रौ, भोजनं तु विशेषतः ॥५६॥ अर्थ-माहति अर्थात् अग्नि में काष्ठ आदि इन्धन डालना, स्नान, अंगप्रक्षालन, श्राव कर्म-पितर आदि देवों की पूजा, देवपूजा, दान, यज्ञ आदि शुभकार्य विशेषतः रात्रि में भोजन अविहित है; अकरणीय हैं।
यहाँ प्रश्न होता है कि ऐसा सुना जाता है कि नक्तभोजन कल्याणकारी है; और वह रात्रि में भोजन किये बिना नहीं हो सकता; इसके उत्तर में यह श्लोक प्रस्तुत है
दिवसस्याष्टमे भागे मन्दीभूते दिवाकरे।
नक्तं तु तद् विजानीयात, न नक्तं निशिभोजनम् ॥५७॥ अर्थ-दिवस के आठवें भाग में जब सूर्य मन्द हो गया हो, उसे ही 'नक्त' जानना चाहिए । 'नक्त' का अर्थ निशा (रात्रि) भोजन नहीं है।
व्याख्या-दिन के आठवें भाग में यानी दिवस के अन्तिम आधे पहर में जो भोजन किया जाय, उसे मत कहते हैं । शब्द को अर्थ में प्रवृत्ति दो प्रकार से होती है- मुख्यरूप से और गौणरूप से । किसी समय इन दोनों में से मुख्यरूप से व्यवहार करना और किसी समय मुख्यरूप से अर्थप्रवृत्ति करने में बाधा आए तो गौणरूप से करना चाहिए । यहाँ नक्तशब्द की रात्रिभोजनरूप मुख्य अर्थप्रवृत्ति में शास्त्रोक्त बाधा आती है, क्योंकि शास्त्र में रात्रिभोजन निषिद्ध है, इसलिए नक्त की गौण-अर्थ में प्रवृत्ति करनी चाहिए । यानी नक्त का गौण अर्थ हुआ--थोड़ा-सा दिन शेष रहे, उस समय भोजन करना । इसी को ले कर कहा गया है कि-सूर्य मन्द हो उस समय-दिन के आठवें भाग में भोजन करना ; नक्त भोजन समझना चाहिए। निष्कर्ष यह है कि मुख्य अर्थ का प्रतिषेध होने से नक्त का अर्थ रात्रिभोजन नहीं करना चाहिए।" अन्य शास्त्रों में भी रात्रिभोजन कहां-कहां निषिद्ध है ? इसे दो श्लोकों में बताते हैं