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योगशास्त्र : तृतीय प्रकाश उपयोग करते हैं। भाई ! यह तो ऐसा ही है, ऊंटों के विवाह में कोई गधा संगीतकार बन कर आया हो और वह ऊंट के रूप की प्रशंसा करता हो और ऊंट करता हो गधे के स्वर की प्रशंसा ! इस प्रकार दोनों एक दूसरे की प्रशंसा करते हों, वैसा हो उक्त कथन है। अब क्रमानुसार पांच उदुम्बर-सेवन के दोष बतलाते हैं
उदुम्बर-वट-प्लक्षकाकोदुम्बरशाखिनाम् । पिप्पलस्य च नाश्नीयात्, फलं कृमिकुलाकुलम् ॥४२॥
अर्थ उदुम्बर (गुल्लर), बड़, अंजीर और काकोदुम्बर (कठूमर) पीपल ; इन पांचों वृक्षों के फल अगणित जीवों (के स्थान) से भरे हुए होते हैं । इसलिए ये पांचों ही उदुम्बरफल त्याज्य हैं।
व्याख्या उदुम्बर शब्द से पांचों ही प्रकार के वृक्ष समझ लेना चाहिए गुल्लर, बड़, पीपल (प्लक्ष), पारस पीपल, कठूमर, लक्षपीपल (लाख) इन पांचों प्रकार के वृक्षों के फल नहीं खाने चाहिए ; क्योकि एक फल में ही इतने कीट होते हैं, जिनकी गिनती नहीं की जा सकती । लौकिक शास्त्र में भी कहा है . "उदुम्बर के फल मे न जाने कितने जीव स्थित होते हैं और पता नहीं, वे कहाँ से कसे प्रवेश कर जाते हैं ? यह भी कहना कठिन है कि इस फल को काटने पर, टुकड़े-टुकड़े करने पर, चर-चूर करने पर, या पीसने पर अथवा छन्ने से भली-भांति छान लेने पर या अलग-अलग कर लेने पर भी उसमें रहे हुए जीव जाते (मर जाते) हैं या नहीं ! अव पांचो उदुम्बरफलों के त्यागरूप में नियम लेने वाले की प्रशंसा करते हैं
अप्राप्नुवन्नन्यभक्ष्यमपि क्षामो बुभुक्षया । न भक्षयति पुण्यात्मा पञ्चोदुम्बरजं फलम् ॥४३॥
अर्थ जो पुण्यात्मा (पवित्र पुरुष) व्रतपालक सुलभ धान्य और फलों से समृद्ध देशकाल में पांच उदुम्बरफल खाना तो दूर रहा ; विषम (मिक्ष पड़े हुए) देश और काल में भक्ष्य अन्न, फल आदि नहीं मिलते हों, कड़ाके की भूख लगी हो ; भूख के मारे शरीर कृश हो रहा हो, तब भी पंचोदुम्बरफल नहीं खाते, वे प्रशंसनीय हैं । अब क्रमप्राप्त अनन्तकाय के सम्बन्ध में तीन श्लोकों में कहते हैं
आई-कन्दः समग्रोऽपि सर्वः किशलयोऽपि च । स्नुही लवणवमत्वक् कुमारी गिरिकणिका ॥४४॥ शतावरी, विरूढानि गुडूची कोमलाम्लिका । पल्यंको तवल्ला च वल्लः शूकरसंजितः ॥४५॥ अनन्तकायाः सूत्रोक्ता अपरेऽपि कृपापरैः । मिथ्याशामविज्ञाता वर्जनीयाः प्रयत्नतः ॥४६॥