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योगशास्त्र : द्वितीय प्रकाश सिले में उज्जयिनीनरेश जितशत्र मुझ पर कोपायमान हैं। वे मी आपके कहने पर मुझे उज्जयिनी में प्रवेश करने देंगे ? मूलदेव ने कहा - 'जब देवदत्ता ने तुम पर इतनी कृपा की है तो मैं भी तुम्हें क्षमा करता हूँ। उसके बाद राजा ने उस पर दयादृष्टि रख कर अपना एक दूत उसके साथ उज्जयिनी भेजा और उज्जयिनीनरेश को अचल को प्रवेश करने की आज्ञा देने का सदेश कहलवाया । अचल को दूत के साथ उज्जयिनी जाने की आज्ञा दी। मूलदेव राजा के सन्देश से अवतिपति ने अचल को उज्जयिनी-प्रवेश की आज्ञा दी। क्योंकि क्रोध का कारण अब समाप्त हो गया था।
एक दिन दुःख से बेचैन कुछ व्यापारियों ने एकत्र हो कर गजा मूलदेव से प्रार्थना की - 'देव ! आप प्रजा की रक्षा के लिए रातदिन चिन्तित रहते हैं, लेकिन इस नगर में चोर-लुटेरे आ कर चारों ओर चोरी, लूटमार आदि करके हमें बहुत हैरान कर रहे हैं। वे चोर ऐसे उद्दण्ड है कि हर रात को किसी न किसी के यहां चोरी करने पहुंच जाते हैं तथा चूहे की तरह दीवार तोडते हैं । कोतवाल भी हमारे जानमाल की सुरक्षा कर सकने में लाचार है। क्या बताएं, अपने घर में भ्रमण की तरह हमारे घर में निःशंक हो कर घूमते हैं, मानो कोई अंजनसिद्धि ही उनके पास हो।' इस पर राजा ने कहा-'प्रजाजनो! घबराओ मत ! मैं शीघ्र ही उस अपयशकारी चोर का पता लगा कर उसे गिरफ्तार करवाऊगा और बड़ी भारी सजा दूंगा।' यों आश्वासन दे कर गजा रवाना हुए। राजा ने राजसभा में नगराध्यक्ष को बुला कर आज्ञा दी-'नगर में जितने भी चोर हैं, उनका पता लगा कर शीघ्र ही पकड़ो और उन्हें कड़ा दण्ड दो।' नगराधिकारी ने कहा स्वामिन् ! और तो ठीक है। पर एक चोर ऐसा है जो हमारे देखते ही देखते आँख बचा कर पिशाच की तरह भाग जाता है। वह पकड़ा भी नहीं जाता।' राजा ने कहा- 'अच्छा, मैं देखूगा उसे ।' उसी रात को नीलवस्त्रधारी बलदेव की तरह राजा ने नीले वस्त्र पहने और नगरचर्या करने हेतु शहर में निकला। जहाँ जहाँ चोरों के छिपने के अड्डे थे, उन सब जगहों पर बाहुबलशाली राजा घूम लिया। दिनभर घूमते-घूमते राजा थक गया और एक टूटे-फूटे खण्डहर बने देवकुल में उसी तरह सो गया जिस नरह गुफा में केमरीसिह सो जाता है । रात्रिचर भूत-प्रेत की तरह भयावना-सा मंडिक नाम का चोरों का सरदार रात को वहां आया । उसने राजा को सोये देख कर आवाज दी ---'यहाँ कौन सोया हुआ है ? सोते हुए सिंह के ममान वहाँ सोए हए राजा के उम चोरपति ने क्रोधित हो कर लात मारी। राजा ने आगन्तुक की चेप्टा, स्थान और धन का पता लगाने की दृष्टि से उत्तर दिया-'मैं एक परदेशी मुमाफिर हूं।' प्रायः ऐसे व्यक्ति आमने-सामने होशियार नहीं होते। चोर ने राजा से कहा--'मुसाफिर ! चल आज मेरे साथ, मैं तुम्हें बहुत मालामाल बना दूंगा।' धिक्कार है, मदान्ध की अजानता को ! राजा धनार्थी हो कर उस चोरसेनापति के पीछे-पीछे पंदल चला। गर्ज पड़ने पर जनार्दन भी गधे के पैरों का मर्दन करता है। राजा को साथ में लिए हुए वह चोरनेता एक बड़े धनाढ्य के घर में घुसा । हथियार से घर में सेंध लगा कर कुड में से अमृत ग्रहण करने वाले राहु की तरह उसने उस घर में जो भी अच्छी-अच्छी वस्तु मिली, उसे ले ली। अज्ञानी चोर द्वारा चराया हुआ और गठरी बंधा वह सारा धनमाल राजा के सिर पर रख कर वे चले । शाकिनी जैसे अपना पेट बताती फिरती है, वैसे ही मूढ़बुद्धि चोर ने राजा को सारा धन बता दिया। राजा ने मन ही मन चोर को खत्म करने की मशा से जैस उस चोरसेनापति ने कहा, वैसे ही बोझ उठा लिया। क्योंकि धूर्त लोग काम पड़ने पर अतिनम्र बन जाते हैं और कार्य सध जाने पर राक्षस-से बन जाते हैं। अतः जीर्ण उद्यान में पहुंच कर उसने वहाँ की गुफा खोली और अंदर घुमा । गोबर में रखे हुए बिच्छू की तरह राजा को भी वह गुफा के अंदर ले गया। गुफा में नाग