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योगशास्त्र : द्वितीय प्रकाश सारे परिवार का जिंदगीमर दुःख नहीं जाता। यानी पूरी जिंदगी तक उसके दुःख का घाव नहीं मिटता। अब चोरी के दुष्परिणाम विस्तार से बताते हैं -
चौर्य-पाप मस्येह वध-बन्धादिकं फलम् । जायते परलोके तु फलं नरक-वेदना ॥६९॥
अर्थ चोरी-रूप पाप-वृक्ष का फल इस जन्म में तो वध, बन्धन आदि के रूप में मिलता ही है ; किन्तु अगले जन्मों में नरक की वेदना के रूप में भयंकर फल मिलता है।
व्याख्या कदाचित् तकदीर अच्छी (मद्भाग्य) हो, या राजा या पुलिस आदि की असावधानी से नहीं पकड़ा जाय परन्तु मन में हरदम पकड़े जाने का डर, उद्वेग, अस्वस्थता, आकीर्ति (बदनामी) आदि इस जन्म के फल हैं। इसे ही बताते हैं
दिवसे वा रजन्यां वा स्वप्ने वा जागरेऽपि वा। सशल्य इव चौर्येण नैति स्वास्थ्यं नर. क्वचित् ॥७०।
अर्थ तीखा कांटा या तीक्ष्ण तीर चुभ जाने पर जैसे मनुष्य शान्ति का अनुभव नहीं कर पाता, वैसे ही चोर को दिन-रात, सोते, जागते किसी भी समय शान्ति महसूस नहीं होती। चोरो करने वाला केवल शान्ति से ही वंचित नहीं होता, उसका बन्धु-बान्धववर्ग भी उसे छोड़ देता है।
मित्र-पुत्र- ला भ्रातरः पितरोणी हि । संसजन्ति क्षणमपि न म्लेच्छरिव तस्कारैः ॥७॥
अर्थ म्लेच्छों के साथ जैसे कोई एक क्षणमर भी संसर्ग नहीं करता ; वैसे ही चोरी करने वाले के साथ उसके मित्र, पुत्र, पत्नी, भाई, माता-पिता इत्यादि सगे-सम्बन्धी भी क्षणभर भी संसर्ग नहीं करते।
व्याख्या नीतिशास्त्र में कहा है-ब्रह्महत्या, मदिरापान, चोरी, गुरुपत्नी के साथ सहवाम और विश्वासघात, इन पांच पापकर्मों को करने वाले के साथ संसर्ग करना भी पांच महापातक में बताये हैं । चोरी करने वाला, चोरी कराने वाला, चोरी की सलाह देने वाला, उसकी सलाह व रहस्य के जान कार चोरी का माल खरीद करने वाला, खरीद कराने वाला, चोर को स्थान देने वाला, उसे भोजन देने वाला; ये