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योगशास्त्र: प्रथम प्रकाश
व्ययमायोचितं कुर्वन् वेषं वित्तानुसारतः । अष्टभि|गुणर्युक्तः शृण्वानो धर्ममन्वहम् ॥५१॥ अजीर्णे भोज् नत्यागा काले भोक्ता च सात्म्यतः। अन्योन्याप्रतिबन्धेन त्रिवर्गमपि साधयन् ॥५२॥ यथावदतिथौ साधौ दोने च प्रतिपत्तिकृत् । सदाऽनभिनिविष्टश्च पक्षपाती गुणेषु च ॥५३॥ अदे शकालयाश्चर्या त्यजन् जानन् बलाबलम् । वृत्तस्थज्ञानवृद्धानां पूजकः पोष्य-पोषकः ॥५४॥ दिशा विशेषज्ञः कृतज्ञो लोकवल्लभः । सलज्जः सदयः सौम्यः परोपकृतिकर्मठः ॥५५॥ अ. रंगारिषड्वर्ग-परिहार-परायणः । वशीकृतेन्द्रियग्रामो गृहिधर्माय कल्पते ॥५६॥
(बरामिः कुलकम्)
अर्थ
(१) जिसका धन-वैभव न्याय से उपाजित हो (२) शिष्टाचार (उत्तम आचरण)का प्रशंसक (३) समान कुल-शील वाले अन्य गोत्र के साथ विवाह करने वाला, (४) पापभीर (५) प्रसिद्ध देशाचार का पालक, (६) किसी का भी अवर्णवादी नहीं, विशेषकर राजादि के अवर्णवाद का त्यागी (७) उसका घर न अतिगुप्त होगा और न अतिप्रगट तथा उसका पड़ोस अच्छा होगा और उसके मकान में जाने-आने के अनेकद्वार नहीं होंगे। (८) सदाचारी का सत्संग करने वाला, (९) माता-पिता का पूजक, (१०) उपद्रव वाले स्थान को छोड़ देने वाला (११) निंदनीय कार्य में प्रवृत्ति नहीं करने वाले, (१२) आय के अनुसार व्यय करने वाला, (१३) वैभव के अनुमार पोशाक धारण करने वाला, (१४) बुद्धि के आठ गुणों से युक्त, (१५) हमेशा धर्मश्रवणकर्ता, (१६) अजीर्ण के समय भोजन का त्यागी, (१६) भोजनकाल में स्वस्थता से पत्र्ययुक्त भोजन करने वाला, (१८) धर्म, अर्थ और काम तीन वर्गों का परस्पर, अबाधकरूप से साधक, (१९) अपनी शक्ति के अनुसार अतिथि, साधु एवं दीन-दुखियों की सेवा करने वाला, (२०) मिथ्या-आग्रह से सदा दूर (२१) गुणों का पक्षपाती, (२२) निषिद्ध देशाचार एवं निषिद्ध कालाचार का त्यागी, (२३) बलाबल का सम्यक् माता, (२४) व्रत-नियम में स्थिर जानवृद्धों का पूजक (२५) आश्रितों का पोषक (२६) बोर्षदर्शी (२७) विशेषज्ञ (२८) कृतज्ञ (२६) लोकप्रिय (३०) लज्जावान (३१) दयालु (३२) शान्तस्वभावी (३३) परोपकार करने में कर्मठ (३४) कामक्रोषादि अंतरंग छह शत्रुओं को दूर करने में तत्पर (३५) इन्द्रिय-समूह को वश में करने वाला; इन पूवोक्त ३५ गुणों से युक्त व्यक्ति गृहस्थधर्म (देशविरतिचारित्र) पालन करने के योग्य बन सकता है।