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योगशास्त्र : द्वितीय प्रकाश
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जिसके प्रभाव से 'वह आगामी चौबीसी में उन्हीं के वर्ण, प्रमाण, संस्था, संहनन और अतिशयों से युक्त पद्मनाभ नामक प्रथम तीर्थंकर बनेंगे। आगे हमने स्तुति करते हुए कहा भी है- आपने पहले तन्मयचित्त हो कर महावीर परमात्मा का ध्यान किया है, जिससे आप उनके समान स्वरूप वाले तीर्थंकर अवश्य ही होंगे । सचमुच, योग का प्रभाव अद्भुत है ! आगम में भी कहा है - अरिहन्त श्रीमहावीर भगवान् जिस प्रकार के शील-सदाचार से युक्त हैं (थे ) ; आप उसी प्रकार के शील-सदाचार से युक्त श्रीपद्मनाभअरिहन्त के रूप में होंगे । इसलिए इसी देव की सेवा और उपासना करनी चाहिए। हमारे द्वारा। दुष्कृत की निन्दा और सुकृत की अनुमोदना इसी देव के सहारे से संसार के भय और दुःखों से हमें बचा सकती हैं। इसलिए इन्हीं की शरण लेने की अभिलाषा करो। पूर्वोक्त अतिशय रहित पुरुषो द्वारा वर्णित ( उपदिष्ट) अन्य शासन ( धर्मसंघ ) का स्वीकार न करके, पूर्वोक्त लक्षणों से युक्त देवाधिदेव वीतराग के शासन को स्वीकार करो। यदि तुममें चेतना ( सद्-असद् का विवेक करने की ज्ञानशक्ति) है तो पूर्वोक्तलक्षणयुक्त देव का ध्यान आदि करो। वास्तव में, चेतनावान् को दिया हुआ उपदेश सफल होता है, चेतना (विवेकबुद्धि) से रहित व्यक्ति को दिया गया उपदेश निष्फल होता है । कहा भी है-अरण्य में रुदन, मुर्दे के शरीर पर मालिश, कुत्ते की टेढ़ी पूंछ को सीधी करने वा प्रयत्न, बहर को संगीत सुनाना, जमीन में कमल का बीज बोना एवं ऊषरभूमि पर हुई वर्षा ; ये सब बातें निष्फल हो जाती हैं, वैसे ही अज्ञानी व्यक्ति को दिया गया उपदेश व्यर्थ जाता है ।
अब अदेव का लक्षण कहते हैं
ये स्त्री-शस्त्राक्षसूत्रादि रागाद्यङ्ककलंकिताः । निग्रहानुग्रहपरास्ते देवा: स्युर्न मुक्तये ॥६॥
अर्थ
जो देव स्त्री, शस्त्र, जपमाला आदि रागादिसूचक चिह्नों से दूषित हैं, तथा शाप और वरदान देने वाले हैं, ऐसे देवों की उपासना आदि मुक्ति का प्रयोजन सिद्ध नहीं करती ।
व्याख्या
कामिनी स्त्री, त्रिशूल आदि अस्त्र-शस्त्र, जपमाला, डमरू आदि वस्तुओं को धारण करने वाले देव इनसे ताण्डव नृत्य, संहार, अट्टहास या आडम्बर करके लोकपूजित बन जाते हैं, लेकिन सच कहा जाय तो ये स्त्री, शस्त्र, जपमाला आदि सब चिह्न उनके राग, द्व ेष, मोह आदि के सूचक हैं । स्त्री राग का कारण है, यदि वह स्वयं विरागी है तो फिर स्त्री रखने का क्या प्रयोजन ? संसार में साधारण मनुष्य भी स्त्री रखता है और वे तथाकथित देव भी रखते हैं तो साधारण मनुष्यों से उनमें क्या विशेषता है ? शस्त्र द्वेष का चिह्न है, वह भी किसी शत्रु, या विरोधी के भय से अथवा अपनी दुर्बलता से रखा जाता है । जपमाला अपनी अज्ञता की निशानी है । माला अपने से किसी महान् व्यक्ति की ही फिराई जाती है । इसलिए माला रखने वाले तथाकथित देवों का भी उनसे बढ़कर कोई महान् देव होना चाहिए । जो वीतरागदेव होते हैं, राग-मोहरहित होने से उनके स्त्री का संग नहीं होता; द्वेषरहित होने से वे विस्मृति की सूचक अथवा महत्पूजा की चिह्नरूप जपमाला भी नहीं रखते। राग, द्वेष और मोह से ही आत्मा में समस्त दोष आ कर जमा हो जाते हैं । समस्त दोषों के मूल ये तीन ही हैं। वध,