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योगशास्त्र : द्वितीय प्रकाश
मार डाला और उसका मांस खा गये। इसी बीच सड़क अपने पुत्रों से यह कहकर कि-'मैं आत्मकल्याण के लिए तीर्थभूमि पर जाता हूं । अब मेरे लिये अरण्य ही शरण है।' ऊंचा मुंह किये कुछ सोचता हुआ-सा वह चल पड़ा । जंगल में जाते-जाते उसे बड़ी जोर की प्यास लगी। पानी की तलाश में घूमतेघूमते उसने विविध वृक्ष की घटाओं से युक्त मित्रसमान एक सरोवर देखा। उस सरोवर का पानी वृक्षों से गिरे हुए पत्तों व फूल-फलों से बेस्वाद तथा मध्याह्न की तपती हुई सूर्यकिरणों से क्वाथ के समान उत्तप्त हो गया था, उसे (गर्म) पिया । ज्यों-ज्यों वह उस पानी को पीता गया त्यों-त्यों उसकी प्यास और अधिक बढ़ती चली गई । जितनी बार वह इस उष्ण जल को पीता, उतनी बार ही उसे पतली दस्त हो जाती; जिससे उसके शरीर से कृमियां निकलती थीं। इस प्रकार प्रतिदिन उस सरोवर के जल पीने और रेच के साथ कीड़े निकल जाने से सेडुक कुछ ही दिनों में रोगमुक्त हो गया। उसके सारे अंग इस प्रकार सुन्दर हो उठे. जिस प्रकार वसन्तऋतु में वृक्ष, अपने अंगोपांगों सहित मर्वाङ्गसुन्दर बन जाता है। निरोग होने से हर्षित हो कर ब्राह्मण अपने घर की ओर वापिस चल पड़ा । जन्मभूमि में सुन्दर शरीर सभी पुरुषों के लिए विशेष शृंगाररूप होता ही है।
सेड़क ने जब अपने नगर में प्रवेश किया तो नागरिक लोग कंचुकीयुक्त सपं के समान उसे रोगमुक्त और सुन्दर आकृतियुक्त देख कर विस्मित हो उठे। नागरिकों ने पूछा--विप्रवर ! आपका निरोग शरीर और सुन्दर आकृति देख कर मालूम होता है, अपने पुनर्जन्म पाया हो ! अतः आपको निरोग और सुन्दर होने का क्या कारण हुआ ?' ब्राह्मण ने कहा - "मैंने देवताओं की आराधना की ; जिससे मैं रोग मुक्त हो गया हूँ।" इसके बाद वह अपने घर पर पहुंचा । वहाँ अपने पुत्रों को कोढ़िये बने देख कर हर्षित हुआ और कहने लगा-'तुमने मेरी अवज्ञा को थी, ठीक उसी का फल तुम्हें मिला है।' पुत्रों ने कहा'पिताजी ! हमने आप पर विश्वास रखा, परन्तु आपने हमारे साथ शत्रु सरीखा निदेय कायं क्यों किया?' यह सुन कर सेडुक चुप हो गया, लड़कों ने उसे कोई आदर नहीं दिया और न अन्य लोगों ने । अतः वह तिरस्कृत और आश्रयरहित हो गया। यह सारी कथा सुना कर भगवान् महावीर ने आगे श्रेणिक राजा से कहा-"राजन ! घूमता-घामता वह सेडुक तुम्हारे नगर में आया और तुम्हारे प्रासाद के द्वारपालों से मिला । द्वारपालों ने जब यह सुना कि मैं इस समय राजगृह नगर में आया हूं तो हर्षित होकर मेरी धर्मदेशना सुनने के लिये अपने स्थान पर उस ब्राह्मण को बिठा कर आये । इस प्रकार जीविका के द्वार के समान सेडुक को द्वारापाल का आश्रय मिला। वह द्वार पर भूखा-प्यासा बैठा था। इतने में ही द्वार पर दाना चुगने के लिये माए पक्षियों को डाले हुए दाने देखते ही भूखे भेडिये की भाति उन पर टूट पड़ा। कुष्टरोग से मुक्त होने पर भूख अत्यन्त बढ़ गई थी। इस कारण से उसने डट कर गले तक ठूस-ठूस कर खाया । मरुभूमि के यात्री को जैसे गर्मी की मौसम में अत्यन्त प्यास लगती है, वैसे ही अतिभोजन करने से सेडुक को बहुत प्यास लगी। प्यास से वह बहुत छटपटा रहा था। फिर भी द्वारपाल के भय से उस स्थान को छोड़ कर किसी पानी के स्रोत या जलाशय की ओर नहीं गया। प्रत्युत वहां बैठा रहा और अत्यन्त तृषापीड़ित हो कर मन ही मन जलचर जीवों को धन्य मानने लगा । असह्य प्यास के कारण हाय पानी. हाय पानी चिल्लाते हुए उसने वहीं पर दम तोड़ दिया। मर कर वह इसी नगरी के दरवाजे के पास वाली बावड़ी में मैडक के रूप में पैदा हुआ। हम विहार करते हुए फिर इस नगर में आये । अतः वन्दन करने के लिये लोग शीघ्रता से बरसाती नदी की तरह उमड़ने लगे। मेरे आगमन के समाचार पनिहारियों के मुंह से सुन कर वह मेंढक विचार करने लगा-'यह बात तो मैंने पहले भी कभी सुनी है।' उसी बात पर बारबार ऊहापोह करते हुए उसे स्वप्नों के स्मरण करने की तरह उसी क्षण जातिस्मरण-जान हो