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अहिंसा की महिमा
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चक्र, खङ्ग, त्रिशूल एवं भाला आदि हथियार उनकी हिमाकारकता प्रगट करते हैं। वे हिंसा करने वाले न भी हों, लेकिन धनुप आदि प्रतीक हिंसा के बोलतं चिह्न हैं। अगर वे हिंसा नहीं करते हैं तो हथियार रखने की क्या जरूरत है ? उनका शस्त्रधारण करना अनुचित है । परन्तु लोक में प्रसिद्ध है कि द्र धनुपधारी हैं, यमराज दण्डधारी हैं, चक्र और खङ्ग के धारक विष्णु है, त्रिशूलधारी शिव हैं, और शक्तिधारी कार्तिकेय हैं । उपलक्षण से अन्य शस्त्रास्त्रधारी अन्यान्य देवों के विषय में भी समझ लेना चाहिए । इस प्रकार हिसा का विस्तृतरूप में निषेध करके अब दो श्लोकों में अहिंसा की महिमा
बताते हैं
मातेव सर्वभूतानामहिंसा हितकारिणी । अहिंसेव हि संसारमरावमृतसारणिः ॥५०॥ अहिंसादुःख- दावाग्नि- प्रावृषेण्यघनावली । भवभ्रमिरुगार्तानामहिंसा परमौषधी ॥५५॥
अर्थ
अहिंसा माता की तरह समस्त प्राणियों का हित करने वाली है। अहिसा ही इस संसाररूपी मरुभूमि (रेगिस्तान) में अमृत बहाने वाली सरिता है। अहिसा दुःखरूपी दावाग्नि को शान्त करने के लिए वर्षाऋतु को मेघघटा है, तथा भवभ्रमणरूपी रोग से पीड़ित जीवों के लिए अहिंसा परम औषधि है ।
अब अहिंसापालन करने का फल बताते है.
दीर्घमायुः परं रूपमारोग्यं श्लाघनीयता ।
अहिंसायाः फलं सर्व, किमन्यत् कामदेव सा ॥५२॥ अर्थ
दीर्घ आयुष्य उत्तम रूप, आरोग्य, प्रशंसनीयता ; आदि सब अहिंसा के ही सुफल हैं। अधिक क्या कहें ? अहिसा कामधेनु की तरह समस्त मनोवाञ्छिम फल देती है ।
व्याख्या
अहिसाव्रत के पालन में तत्पर व्यक्ति जब दूसरे के आयुष्य को बढ़ाता है तो यह निःसंदेह कहा जा सकता है कि उसे भी जन्म-जन्मान्तर में लम्बा आयुप्य मिलता है। दूसरे के रूप का नाश न करने
से वह स्वतः ही उत्तम रूप पाता है। दूसरों को अस्वस्थ बना देने वाली हिंसा का त्याग करके जब अहिंसक दूसरों को स्वस्थता प्राप्ति कराता है तो वह स्वतः परमस्वास्थ्यरूप निरोगता प्राप्त करता है और समस्त जीवों को अभयदान देने से वे प्रसन्न होते हैं, और उनके द्वारा प्रशंसा प्राप्त करता है । सारे अहिंसा के फल हैं । इस अहिंसा का साधक जिस-जिस प्रकार की मनोवाञ्छा करता है, उसे भी अहिंसा से प्राप्त कर लेता है । उपलक्षण से अहिंसा स्वर्ग और मोक्ष का सुख देने वाली है ।
अहिंसा के सम्बन्ध में और भी कहते हैं।
हेमाद्रिः पर्वतानां हरिरमृतभुजां शीतांशुयोतिषां स्वस्तonfroहां
चक्रवर्ती नराणाम् । चंडरोजि हाणाम् ।।