________________
१४६
योगशास्त्र : द्वितीय प्रकाश
सैनिकों ने उसी प्रकार पकड़ लिया जैसे भील सूबर को घेर कर पकड़ लेते हैं। सूर्यबिम्ब के तुल्य तेजस्वी दिव्यरूपधारी कोढ़िया सब के देखते ही देखते क्षणभर मे आकाश में उड़ गया । राजसेवकों ने यह बात राजा को बताई । अतः राजा ने विस्मित हो कर भगवान से पूछा- 'भगवन् ! यह कौन था जो इस प्रकार देखते ही देखते क्षणभर में गायब हो गया। तब प्रभु ने कहा- 'यह एक देव है।' श्रेणिक ने फिर पूछा-'भगवन् ! जब यह देव है, तब यह कोढ़ी का रूप बना कर क्यों आया है ?' भगवान् ने उत्तर दिया .- 'राजन् ! सुनो' वत्सदेश मे कौशाम्बी नाम की नगरी में राजा शतानीक राज्य करता था। उस नगर में जन्मदरिद्र और महामूर्ख सेडक नाम का ब्राह्मण रहता था। एक दिन उसकी गर्भवती पत्नी ने उससे कहा-'कुछ ही दिनों में मेरे प्रसव होने वाला है, अतः आप मेरे लिये घी ले आओ। नही तो, उस समय मुझ से यह प्रसवपीड़ा सहन नहीं होगी।' इस पर ब्राह्मण ने कहा--"प्रिये ! मेरे पास विद्या या कला तो है नहीं ;' जिससे मैं कहीं भी जा कर जरा भी घी प्राप्त कर सकू। श्रीमान् लोग तो कला से सब चीज प्राप्त कर लेते है।' तब ब्राह्मणी ने कहा-'स्वामिन् ! आप राजा की सेवा करिये । इस धरती पर राजा दूसरा कल्पवृक्ष होता है ।' रत्नप्राप्ति के लिए जैसे लोग सागर की सेवा करते हैं, वैसे ही वह ब्राह्मण उसकी बात मान कर फल-फूल मादि से गजा की सेवा करने लगा । वर्षाऋतु के बादल जैसे आकाश को घेर लेते हैं, एक दिन वैसे ही चम्पापुरी के राजा ने महान सैन्य के साथ कौशाम्बी को घेर लिया। बांबी में बैठा हुमा सर्प जैसे समय की प्रतीक्षा करता रहता है, वैसे ही सैन्य सहित शतानीक कौशाम्बी में बैठा-बैठा समय की प्रतीक्षा कर रहा था। जब बहुत समय हो चुका तो शतानीक के सैनिक राजहंस की तरह ऊब कर वहां से जाने लगे । एक दिन सड़क सुबह-सुबह फूल लेने के लिए उद्यान में पहुंचा। तब उसने सैनिकों एवं राजा के निस्तेजग्रहो के समान फोके चेहरे देखे । उसी समय उसने शतानीक राजा से आ कर निवेदन किया-'राजन् ! ट्टे हुए दांत वाले सपं के समान आपका शत्रु निर्वीर्य हो गया है, अतः अगर आज ही उसके साथ युद्ध करेंगे तो अनायाम ही उसे पकड़ सकेंगे। कोई व्यक्ति कितना ही बलवान हो मगर खिन्न होने के बाद शत्रु से लोहा नहीं ले सकता। उसके वचन को मान कर राजा अपनी विशाल सेना और सामग्री ले कर वाणवृष्टि करता हुआ अपने शिविर से बाहर निकला । अचानक चम्पानगरी पर हमला देख कर चम्पा की राजसेना पीछे देखे बिना ही बेहताशा भागने लगी। सच है, अचानक बिजली गिरने पर उसकी और कोन देख सकता है ? किस दिशा में जाऊं? इस विचार से हक्काबक्का हो कर चम्पानरेश अकेला ही जान बचा कर भाग निकला। चम्पानरेश के भागने से पहले ही उसकी सेना में भगदड़ मच गई थी। अत: मौका देख कर कौशाम्बी नरेश ने चम्पानरेश के हाथी, घोड़े, रथ एवं खजाना आदि बहुत-सा माल लूट कर अपने कब्जे में कर लिया। बाद में हर्षयुक्त विजयी शतानीक राजा ने वहां से ससैन्य कूच करके सहर्ष कौशाम्बी में प्रवेश किया।
विजयोन्मत्त राजा ने प्रसन्न हो कर मेडुक ब्राह्मण से कहा - 'विप्र ! बोलो तुम्हें क्या दे दूं? उसने कहा- मैं अपने कम्बियों से पूछ कर यथेष्ट वस्तु आप से मांगूगा !' गृहस्थों को गृहिणी के बिना स्वयं कोई विचार नहीं सकता। भट्ट हर्षित होता हुआ मट्टिनी के पास पहुंचा और उससे सारी बात कही। इस पर
दिमती ब्राह्मणी ने आगे पीछे का विचार किया-'अगर इसे राजा से गांव आदि मांगने का कहूंगी तो गांव आदि मिलने पर यह शायद दूसरी शादी कर ले। क्योंकि वैभव अहंकार का जनक होता है। अत. यही ठीक रहेगा कि चक्रवर्ती के राज्य में हमें प्रतिदिन बारीबाग से प्रत्येक