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योगशास्त्र:दितीय प्रकाश
साथ कामक्रीड़ा की। सचमुच, काम बड़ा निरंकुश है। अहिल्या के साथ इन्द्र ने जैसे कामसुख का अनुभव किया था, वैसे ही अनन्तवीयं ने तापसपत्नी के साथ इच्छानुसार विषयसुख-सम्पदा का अनुभव किया । जैसे ममता-पत्नी मे वहस्पति को उतथ्य नामक पुत्र हुआ वैसे ही अनंतवीर्य से रेणुका को पुत्र हुआ । ऋषि रेणुका को उस पुत्र के साथ अपने घर ले आया। सच है, स्त्री के मोह में आसक्त मनुष्य प्रायः दोष नहीं देखता। अकाल मे फलित लता के समान पुत्र-सहित रेणुका को देख कर वह एकदम क्रुद्ध हो उठा। उसने आव देखा न ताव, शीघ्र ही अपने परशु से उस बालक को मार डाला। रेणुका ने यह बात अपनी बहिन के द्वारा अनन्तवीर्य को कहलाई। यह सुनते ही हवा से आग की तरह अनन्तवीर्य का क्रोध भड़क उठा। अतिपराक्रमी बाहुबली अनन्तवीर्य राजा फौरन जमदग्नि के आश्रम में आ पहुंचा । वहां जाते ही मदोन्मत्त हाथी की तरह उसने जमदग्नि के आश्रम के पेड़ों को उखाड़ कर उसे नष्ट-भ्रष्ट कर डाला। वहां के तापसों को परेशान करके उनकी गायें बछड़े आदि सब छीन लिए और केसरीसिंह की तरह मस्ती से झमता हुआ अनन्तवीर्यनृप हस्तिनापुर लोटा । दुःखित तपस्वियों का आत्तंनाद और उनके साथ हुई ज्यादती व संघर्ष का कोलाहल सुन कर एवं आश्रम को उजाड़ने की बात जान कर क्रुद्ध परशुराम साक्षात् यमराज के समान परश ले कर दौड़ा। अनेक सुभटों का युद्ध देखने के उत्सुक जमदग्नि-पुत्र परशुराम ने भयंकर परशु (कुल्हाड़) से काष्ठ के समान अनंतवीर्य के टुकड़े-टुकड़े कर डाले। अनन्तवीर्य की मृत्यु हो जाने पर प्रजा के अग्रगण्यों ने उसके पुत्र को राजगद्दी पर बिठाया । अभी वह छोटी उम्र का ही था। अपनी माता से एक दिन अपने पिता की मृत्यु की बात सुन कर और माता से आज्ञा प्राप्त करके वह चला और सर्प के समान जमदग्नि को मार कर बदला लिया। पिता की हत्या की बात से परशुराम का क्रोध अति उग्र हो गया । वह तत्काल हस्तिनापुर पहुंचा और उसने परशु के एक ही प्रहार से कृतवीर्य का खात्मा कर दिया । यमराज के लिये कौन-सी बात असाध्य है ? कृतवीर्य के मरने के वाद परशुराम स्वयं उसकी गद्दी पर बैठा। राज्य सदा पराकमाधीन होता है ; उसमें परम्परागत कम नहीं होता।' जैसे हिरनी सिह से डर कर भागती है. उसी प्रकार कृतवीर्य की गर्भवती पत्नी हस्तिनापुर को अपने काबू में कर लेने के बाद परशुराम के डर से तापसों के एक आश्रम में पहुंची। तापसों ने उसे निधान की तरह भूमिगह (तलघर) में रखी और क्रूर परशुराम से उसकी रक्षा की।
___एक दिन रानी ने चौदह महास्वप्न देखे और ठीक समय पर एक सुन्दर स्वस्थ पुत्र को जन्म दिया। सुख से भूमिगृह में रखने के कारण उसकी माता ने उसका नाम 'सुभूम' रखा। परशुराम का परशु जहाँ-जहाँ क्षत्रिय थे, वहां-वहां साक्षात् मूर्तिमान कोपाग्नि हो कर जलने लगा और हजारों क्षत्रियों को मारने लगा । एक दिन अनायास ही परशुराम उस आश्रम में जा चढ़ा, जहां सुभूम का पालनपोषण हो रहा था । जहाँ-जहाँ धुआ होता है, वहां-वहां अग्नि अवश्य होती है। इस न्याय से परशुराम का क्षत्रियसूचक परशु वहां जलने लगा। अतः उसने तुरंत तापसों से पूछा-'क्या यहाँ कोई भत्रिय है ? उन्होंने कहा- हम क्षत्रिय ही तापस बने हैं।' दावानल जैसे पर्वतशिखरों को घासरहित बना देता है, वैसे ही उसके पश्चात् परशुराम ने अपनी कोपाग्नि से पृथ्वी को सात बार निष्क्षत्रिय बना दी। अतः परशुराम ने अपनी पूर्ण हुई आशाओं के समान यमराज के पूर्णपात्र के समान शोभायमान थाल को विनष्ट हुए क्षत्रियों की दाढ़ियों से पूर्ण भर दिया। एक बगर उसने कुछ निमित्तज्ञों से पूछा -'मेरा वध किसके हाथों से होगा ? वर-विरोध रखने वाले को शत्रुओं से अपनी मृत्यु की सदा आशंका बनी रहती है। उन निमित्तशों ने कहा-'ये दाढ़ियां जब बीर के रूप में परिणत हो जायेंगी और उस सिंहासन पर बैठ कर जो उस बीर को बाएगा ; वही भविष्य में बापका वष करेगा।' परशुराम ने एक