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है। तथा यह भी कहा है-“कषायोदयरंजिता योग प्रवृति लेश्या । अर्थात लेश्या कषायोदय से अनुर जित योग प्रवृत्ति है ।
भावयोग जीवोदय निष्पन्न भाव भी है अतः कर्मों के उदय से जीव के मन-वचनकाययोग होते है । द्रव्ययोग पौद्गलिक है अतः अजीवोदयनिष्पन्न होने चाहिए-"पओगपरिणामए-वण्णे, गंधे, रसे, फासे, सेत्तं अजीवोदय निम्फन्ने।" १-द्रव्य योग क्या है ?
(१) द्रव्य योग अजीव पदार्थ है । (२) मनोयोग तथा वचनयोग अनंतप्रदेशी चतुःस्पशी पुदगल है, काययोग-अनंत
प्रदेशी अष्टस्पर्शी पुद्गल है । (३) इसकी अनंत वर्गणा होती है । (४) इसके द्रव्यार्थिक स्थान असंख्यात है। (५) इसके प्रदेशार्थिक स्थान अनंत है । (६) तीनों योगों में पाँच वर्ण होते हैं । (७) योग असंख्यात प्रदेश अवगाह करते हैं । (८) वे परस्पर परिणामी है । (६) यह आत्मा के सिवाय अन्यत्र परिणत नहीं होते हैं। (१०) यह अजीवोदय निष्पन्नभाव है। (११) द्रव्ययोग-मनोयोग-वचनयोग अगुरुलघु है, काययोग गुरुलघु है। (१२) यह भावितात्मा अनगार के द्वारा अगोचर है अज्ञेय है। (१३) यह जीवग्राही है। (१४) अशुभ योग-द्रव्य अशुभयोग दुर्गधवाले है, द्रव्य शुभयोग सुगंध वाले है । (१५) अशुभयोग अमनोज्ञ रस वाले है, शुभयोग मनोज्ञ रसवाले हैं। (१६) द्रव्य अशुभयोग शीतरुक्ष स्पर्शवाले है, द्रव्य शुभयोग ऊष्णस्निग्ध स्पर्श
वाले है। (१७) द्रव्य अशुभयोग वर्ण की अपेक्षा अविशुद्ध वर्णवाले है तथा द्रव्य शुभयोग
विशुद्ध वर्णवाले है। (१८) यह कर्म पुद्गल से स्थूल है । (१६) यह द्रव्य कषाय से स्थूल है। (२०) द्रव्य लेश्या के पुद्गल से द्रव्य मनोयोग-द्रव्य वचन योग के पुद्गल सूक्ष्म
है तथा काययोग के पुद्गल स्थूल पड़ते हैं। (२३) यह औदारिक शरीर पुदगलों से सूक्ष्म है।
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