________________
( ३३४ ) मानकमल बोढा, दीनापुर ( नागालैंड)
ता०३-६-८७ वधमान जीवन कोश (द्वितीय) कड़ी मेहनत से तैयार किया है। इस समय का यह ग्रन्थ अत्यन्त उपयोगी ग्रन्थ मंथन है । यह पढ़ने बालों से भी मनन करने वालों के लिए सरत और बिल्कुल सही साबित हुआ है और होता रहेगा। इसमें प्रसंग क्रमशः है परन्तु ऐसा होते हुए भी अलग-अलग है। साध्वीश्री यशोधरा,
ता० २९-८-८७ प्रस्तत समीक्ष्य ग्रन्थ 'वर्धमान जीवन कोश' का द्वितीय खण्ड अपने आपमें अनूठा और अद्वितीय है। महावीर-जीवन सम्बन्धी सन्दर्भ ग्रन्थ में सम्पादक द्वय का भागीरथ प्रयत और गम्भीर अध्ययन प्रतिबिम्बित हो रहा है। आगमों में यत्र-तत्र बिखरी सामग्री को एकत्र कर इस तरीकेसे सजाया है कि शोध विद्यार्थियोंके लिए बड़ी सुगमता कर दी है। प्रस्तुत ग्रन्थ के संकलन-संपादन में शताधिक ग्रंथोंका उपयोग संपादककी 'एग्गा चित्तोभविस्सामित्ति' एकाग्र चित्तता का अवबोधक है ।
आगम-सिन्धुका अवगाहनकर अनमोल मोतियों के प्रस्तुतीकरण का यह प्रयास सचमुच महनीय और प्रशस्य है।
-मुनि चन्द्रप्रभसागर भीचन्द्र जी चोरडिया का 'वर्धमान-जीवन-कोश द्वितीय खण्ड' समाप्त हुआ। ग्रंक्प्रेषण हे आभार-शापन ।
__ भगवान महावीर पर सम्प्रति-पर्यन्त बहुविध स्तरीय कार्य हुए है, किन्तु यह ग्रन्थ अपने आप में अभूतपूर्व है। शोध-स्नातकों के लिए तो यह ग्रंथ सारस्वत वरदान सिद्ध होगा, ऐसा मेरा आत्म-विश्वास है। 'वर्धमान जीवन-कोश' का प्रथम खण्ड भी पादेय सिद्ध हुमा था। यद्यपि सामान्यतया लोग कोश-निर्माण के कार्य को महत्ता की रष्टि से नहीं देखते, परन्तु मेरा विचार है कि मौलिक चिन्तनमूलक ग्रंप-लेखन उतना बेतुण्यान और श्रमसाध्य नहीं है, जितना कि कोश-संग्रहीत करना। मैं ऐसे ग्रंथों का हृदय हे स्वागत किया करता हूँ।
शिवस्ते पन्थाः।
वर्धमान जीवन कोश-प्रथम खण्ड पर प्राप्त समीक्षा डा० ज्योतिप्रसाद जैन, लखनऊ
यह ग्रन्थ भगवान महावीर के जीवन सम्बन्धी संदर्भो का विस्तृत विश्वकोश है। लेश्या कोश तथा क्रिया कोश की भाँति इसका निर्माण भी अन्तरराष्ट्रीय बशमलव वर्गीकरण पद्धति से किया गया है। इसमें सन्देह नहीं है कि शोधार्थियों के लिए यह ग्रन्ध अतीन उपयोगी सिद्ध होगा।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org