Book Title: Yoga kosha Part 1
Author(s): Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 419
________________ ( ३२८ ) Glory of India, faert 'मिथ्यात्वी का आध्यात्मिक विकास' यह पुस्तक अनेक विशिष्टतामों से युक्त है। एक मिथ्यात्वी भी सद्-अनुष्ठानिक क्रिया से अपना आध्यात्मिक विकास कर सकता है। साम्प्रदायिक मतभेदों की बातें या तो आई ही नहीं है अथवा भिन्न-भिन्न दृष्टिकोणों का समभाव से उल्लेख कर दिया गया है। भी चोरड़ियाजी ने विषय का प्रतिपादन बहुत ही सुन्दर और तत्तस्पर्शी ढंग से किया है। विद्वज्जन इसका मूल्यांकन करें। निःसन्देह दार्शनिक जगत के लिए चोरडियाजी की यह एक अप्रतिम देन है । मुगिनी जशकरण, सुजानगढ़ अनुमानतः लेखक ने इस ग्रंथ को लिखने के लिए अनेकानेक ग्रंथों का अवलोकन किया है। टीका भाष्यों के सुन्दर संदर्भो से पुस्तक अतीव आकर्षक बनी है। डॉ० भागबन्द्र जैन, नागपुर विद्वान् लेखक ने यह स्पष्ट करने का साधार प्रयत्न किया है कि मिथ्यात्वी का कर और किस प्रकार विकास हो सकता है। लेखक और प्रकाशक इतने सुन्दर ग्रंथ के प्रकाशन के लिए बधाई के पात्र हैं। डॉ. दामोदर शास्त्री, दिल्ली लेखक ने अपने इस ग्रंथ में शोधसार समाविष्ट कर शोधार्थी विद्वज्जनों के लिए मार्ग प्रशस्त किया है । यत्र-तत्र पेचीदे प्रश्नों को उठाकर उसका सोदाहरण व शास्त्र सम्मत समाधान भी किया गया है। मुनिश्री राकेशकुमार, कलकत्ता भीचंद चोरड़िया के विशिष्ट ग्रंथ "मिथ्यात्वी का आध्यात्मिक विकास' में शास्त्रीय दार्शनिक दोनों दृष्टियों से महत्वपूर्ण प्रतिपादन हुआ है। जैन धर्म के तात्विक चिन्तन में रूचि रखनेवालों के लिए तो यह पुस्तक ज्ञानवर्द्धक और रसप्रद है ही, किन्तु साम्प्रदायिक अनाग्रह और वैचारिक उदारता के इस युग में हर बौद्धिक और चिन्तनशील व्यक्ति के लिए इसका स्वाध्याय उपयोगी भी है। भंवरलाल जैन न्यायतीर्थ, जयपुर पुस्तक में नौ अध्याय है-विभिन्न दृष्टिकोणों से मिथ्यात्वी अपना आत्म विकास किस रूप में किस प्रकार कर सकता है-यह दर्शाया है। जैन सिद्धान्त के प्रमाणों के माधार पर इस विषय को स्पष्टतया पाठकों के समक्ष लेखक ने सरल सुबोध भाषा में रखा है। जिसके लिए वे बधाई के पात्र हैं। शास्त्रीय चर्चा को अभिनय रूप में प्रस्तुत करने में लेखक सफल हुए है। (बीर वाणी) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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