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राम सूरी ( डेलावाला ), कलकत्ता
'मिथ्यात्वी का आध्यात्मिक विकास' पुस्तक में आलेखित पदार्थों के दर्शन से जैन दर्शन व जैनागमों की अजैनों की तरफ उदात्त भावना और आदरशीलता प्रकट होती है । एवं जैन धर्म को अप्राप्त आत्माओं में कितने प्रमाण में आध्यात्मिक विकास हो सकता हैइत्यादिक विषयों का आलेखन बहुत सुन्दरता से जैनागमों के सूत्रपाठों से दिखाया गया है। इसलिए विद्वान श्रीचन्द चोरड़िया का प्रयास बहुत प्रशंसनीय है और यह ग्रन्थ दर्शनीय है। डॉ. नरेन्द्र भणावत, जयपुर
लेखक की यह कृति पाठकों का ध्यान एक नई दिशा की ओर खींचती है। शास्त्र मर्मज्ञ विद्वानों को विविध विषयों पर गहराई से चिन्तन करने की ओर प्रवृत्ति करने में यह पुस्तक सहायक बनेगी। डॉ. ज्योति प्रसाद जैन, लखनऊ
प्रायः यह समझा जाता है कि मिथ्यात्वी व्यक्ति धर्माचरण का अधिकारी नहीं है और उसका आध्यात्मिक विकास नहीं हो सकता। भ्रान्ति का निरसन विद्वान लेखक ने सरल-सुबोध किन्तु विवेचनात्मक शैली में और अनेक शास्त्रीय प्रमाणों की पुष्ठिपूर्वक किया है।
जमनालाल जैन, वाराणसी
__ यह अपने विषय की अपूर्व कृति है। मनीषी लेखक ने लगभग दो सौ ग्रन्थों का गम्भीर परायण एवं आलोडन करके शास्त्रीय रूप में अपने विषय को प्रस्तुत किया है। परिभाषाओं और विशिष्ट शब्दों में आबद्ध तात्विक प्ररूपणाओं एवं परम्पराओं को उन्मुक्त भाव से समझने के लिए यह कृति अतीव मूल्यवान है । ( श्रमण पत्रिका)
भंवरलाल नाहटा, कलकत्ता
शास्त्र प्रमाणों से परिपूर्ण इस ग्रन्थ में विद्वान लेखक ने नौ अध्यायों में प्रस्तुत विषय पर अच्छा प्रकाश डाला है ।
पं० चन्द्रभूषणमणि त्रिपाठी, राजगृह
लेखक ने काफी विस्तार के साथ उस चर्चा को पुनः चिन्तन का आयाम दिया है। पुस्तक एक अच्छी चिन्तन सामग्री उपस्थित करती है ।
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