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( ३२३ ) - वर्धमान जीवनकोश, द्वितीय खण्ड पर प्राप्त समीक्षा
डा० ज्योतिप्रसाद जैन, लखनऊ
यह युग विधिवद्ध खोज व शोध का है। अन्वेषक कार्य को सहज और सुगम करने के लिए ही विभिन्न प्रकार के संदर्भ ग्रन्थों की बड़ी उपयोगिता है। इस संदर्भ ग्रन्थों से भी अधिक उपयोगिता है वर्गीकृत कोषों की। वर्गीकृत कोश ग्रन्थ जैसा कि
वर्धमान जीवन कोश द्वितीय खण्ड, पूर्व प्रकाशित सभी ग्रन्थों से भिन्न है ।
इस कार्य के लिए आगम ग्रन्थ उनकी टीकायें, श्वेताम्बर व दिगम्बर आगमेतर ग्रन्थ, कुछ बौद्ध एवं ब्राह्मण्य ग्रन्थ एवं परवर्तीकालीन कोश, अभिधान आदि का भी उपयोग किया है। इस खण्ड में उनके ३३ या २७ भवों का विवरण जो कि श्वेताम्बर व दिगम्बर परम्परा से लिया गया है। इससे तुलनात्मक अध्ययन सुगम ही हो जाता है । इसके अतिरिक्त इसमें भगवान महावीर के पाँचों कल्याणक, नाम एवं उपनाम, उनकी स्वतियाँ, समवसरण, दिव्यध्वनि, संघविवरण, इन्द्रभूति आदि ग्यारह गणधरों का पृथकविवरण आदि संकलित है। आर्या चन्दना का भी विवरण प्रस्तुत ग्रन्थ में दिया गया है।
इस भाग में संकलित अनेक विषय बहुधा प्रथम भाग में संकलित विषयों के परिपूरक है। विषयों को इसमें अंतर्जातीय दशमलव के रूप में विभाजित व संकलित किया गया है जैसा कि सम्पादकों ने उपरोक्त वर्गीकृत कोश ग्रन्थों में किया है।
विद्वानों व अन्वेषकों के लिए तीर्थकर भगवान महावीर के इस भाँति के वर्गीकृत कोष ग्रन्थों की उपादेयता के विषय में कोई दो मत नहीं हो सकता। परिश्रम साध्य व समय सापेक्ष इस कार्य को इतने सुचारु रूप से संपादन करने के लिए हम विद्वान पण्डित श्रीचन्द चोरडिया का आन्तरिक भाव से अभिनन्दन करते हैं। साथ ही जैन दर्शन समिति और उनके कार्यकर्ताओं को भी इसके प्रकाशन के लिए धन्यवाद देते है ।
मुनिश्री जसकरण, सुजान, बोरावड़ ( सुजानगढ़ वाले )
ता०६-५-८७ वर्धमान जीवन कोश (द्वितीय खण्ड ) में भगवान महावीर के जीवन सम्बन्धित अनेक भवों की विचित्र एवं महत्वपूर्ण उपलब्धि है। यह कार्य अति उत्तम एवं प्रशंसनीय है।
इसके लेखक मोहनलाल जी बांठिया तथा भीचन्द जी चोरड़िया के श्रम का ही सुफल है। यह ग्रन्थ इतना सुन्दर एवं सुरम्य बन सका है। शोधकर्ताओं के लिए यह ग्रन्थ काफी उपयोगी होगा-ऐसा विश्वास है। रिसर्च करने वालों की भगवान वर्धमान
के संबंध में सारी सामग्री इस ग्रन्थ में उपलब्ध हो सकेगी। Jain Education International For Private & Personal Use Only
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