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( २४६ ) ९६ १५ द्वीन्द्रिय जीवों में उत्पन्न होने योग्य जीवों में
गमक १९-बेइंदियार्ण भंते ! कओहितो उपधज्जति ? जाप पुढषिपकाइए णं भंते! जे भषिए बेइं दिएसु उपवज्जित्तएxxx सच्चेष पुढविकाइयस्स लद्धी x x x देवेसु नचेष उपजंति )
-भग श २४ । उ १७ । सू. १ उनके सम्बन्ध में योग की अपेक्षा पृथ्वीकायिक उद्देशक ( ६६१० ) में जैसा कहा वैसा ही कहना। १६.१६ त्रीन्द्रिय जीवों में उत्पन्न होने योग्य जीवों में
गमक १९-तेई दिया णं भंते ! कमोहितो उषषज्जति ? एवं तेइंबियाण जहेष बेइंदियाण उद्देसो।
-भग• श २४ । उ १८ । सू१ उनके सम्बन्ध में योग की अपेक्षा द्वीन्द्रिय उद्देशक में जैसा कहा-वैसा ही
कहना।
"१६१७ चतुरिन्द्रिय जीवों में उत्पन्न होने योग्य जीवों में
चउरिदिया णं भंते ! कओहितो उपवज्जति एवं जहा तेई दियाणं उहेसओ तहेष चउरिदयाण घि
-भग• श २४ । उ १६ । सू १ उनके सम्बन्थ में योग की अपेक्षा त्रीन्द्रिय उद्देशक में जैसा कहा-वैसा ही
कहना।
१६.१८ पंचेन्द्रिय तिथंच योनि में उत्पन्न होने योग्य जीवों में
'१६१८१ से ७ रत्नप्रभा नारकी से तमतमाप्रभा पृथ्वी के नारकी से उत्पन्न होने
योग्य जीवों में
रयणपमापुढविनेरइए णं भंते ! जे भषिए पंचिंदियतिरिक्खजोणिएनु उवषजित्तए xxxएवं सेसापिसत्तगमगा भाणियघा जहेष नेरइए उद्देसए सन्निपंचिदिएहि सम्म x x x | सक्करप्पभापुढविनेरइए णं भंते ! जे भविए. एबं जहा रयणप्पभाए णव गमगा तहेषसक्करप्पभाए पिxxx एवं जाप छहपुढपी x x x। अहेसत्तमाए पुढषीनेरइए णं भंते ! जेभषिए० एवं चेष णष गममाxxx।
-भग• श २४ । उ २० । सू ३ से ५ उन सातों नारकी में तीनों योग होते हैं।
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