Book Title: Yoga kosha Part 1
Author(s): Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 406
________________ डीका - सुगमं । ( ३१५ ) जहणेण एगसमओ I ० खं० २ । ३ । सू ६६ । पृ ७ पृ० २०७ -षट् ० टीका - कुदो ? ओरालियकायजोगादो मणजोगं बचिजोगं वा गंतूण एगसमय मच्छिय विदियसमए वाघादव सेणगदस्स एगसमयअंतरुवलं भादो । ओरालिय मिस्सकायजोगिस्स अपजत्तभावेण मण वचिजोगविरहियस्स कधमंतरल्स पगसमओ ? ण, ओरालियमिस्लकायजोगादो एगविग्गहं करिय कम्मइयजोगम्मि एगसमयमच्छिय बिदियसमए ओरालियमस्तं गदस्ल एगसमयअंतरुवलंभादो । उक्कस्सेण तेचीसं सागरोवमाणि सादिरेयाणि । • खं० २ । ३ । सू ६७ | ७ | पृ० २०७-८ -षट् • टीका - कुदो ? ओरालियकायजोगादो चत्तारिमण चत्तारिवचिजोगेसु परिणमियकालं करिय तेत्तीस उट्ठदिएसु देवेसुवधजिय सगट्ठिदिमच्छिय दो fart काढूण मणु से सुप्पजिय ओरालिय- मिस्सकायजोगेण दीहकालमच्छिय पुणो ओरालियकायजोगं गदस्स णवहि अंतोमुहुत्ते हि वेहि समएहि सादिरेयतेत्तीस सागरोपमेत्तं तरुवलं भादो । एवमोराजिय मिस्लकायजोगस्स वि अंतरं बत्तन्वं । णवरि अंतोमुहुत्तणपुञ्चकोडीए सादिरेयाणि तेत्तीससागशेवमाणि अंतर होदि, रइए हितो पुव्वकोडाउअमणुस्से सुप्पजिय ओरानियमिस्सकायजोगस्स आदिकरिय सम्बलहुं पजत्तीभो समाणिय ओरालियकायजोगेणंतरिय goaकोर्डि देसूणं गमिय तेत्तीसाउट्ठिदिदेवे सुप्प जिय पुणो विग्गहे काढूण ओराजिय मिस्सकायजोगं गद्स्स तदुबलंभादो । औदारिक काययोगी और औदारिकमिश्र काययोगी जीवों का जधन्य अन्तर एक समय होता है, क्योंकि औदारिक काययोग से मनोयोग या वचनयोग में जाकर एक समय रहकर दूसरे समय में योग का व्याघात होने से औदारिक काययोग में आये हुए जीव के औदारिक काययोग का अन्तर एक समय होता है । यद्यपि औदारिक मिश्र काययोगी अपर्याप्त अवस्था में होता है, जबकि जीव के मनोयोग और वचनयोग होता ही नहीं है तथापि उसके एक समय का अन्तर होने का कारण यह है कि औदारिकमिश्र काययोग से एक विग्रह करके कार्मण योग में एक समय रहकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org सम

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