Book Title: Yoga kosha Part 1
Author(s): Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 411
________________ ( ३२० ) ... कार्मण काययोगी जीवों का जघन्य अन्तर तीन समय कम क्षुद्रभवग्रह मात्र होता है, क्योंकि तीन विग्रह करके क्षुद्रभव ग्रहण बाले जीवों में उत्पन्न हो पुनः विग्रह करके निकलनेवाले जीव के तीन समय कम क्षुद्र भवग्रहण मात्र कार्मण काययोग का जघन्य अन्तर प्राप्त होता है। कार्मण काययोगियों का उत्कृष्ट अन्तर अंगुल के असंख्यातवें भाग रूप असं. ख्यातासंख्यात अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी काल पर्यन्त होता है क्योंकि, कार्मण काययोग से औदारिकमिश्र या वैक्रियमिश्र काययोग में जाकर असंख्यातासंख्यात अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी रूप अंगुल के असंख्यातवें भाग मात्र काल तक रहकर पुनः विग्रह गति को प्राप्त हुए जीव के कामण काययोग का उपर्युक्त अन्तर काल प्राप्त होता है । .१० अजोगी णं भंते ! अंतरंकालओ केवश्चिरं होइ ? गोयमा! साइल्स अपजवसियस्स णस्थि अंतरं । -जीवा० प्रति ६ । सू २६६ अयोगी जीव का अन्तरकाल नहीं है सादि-अपर्यवसित का अन्तर नहीं होता है। प्रा Acharyalal Basu ला वर्ग अध्ययन, गाथा, सूत्र आदि की संकेत सूची अध्ययन, अध्याय प्राभूत अधिकार प्रपा प्रतिप्रामृत उद्देश, उद्देशक भा भाध्य गाथा भाग भाग चरण लाइन चूणीं चूलिका वार्तिक टीका वृत्ति दशा शतक द्वार शीलांका शीलांकाचार्य नियुक्ति श्रतस्कन्ध श्लोक पंक्ति सम समवाय पृष्ठ पैरा स्था स्थान सिद्ध सिद्धसेन प्रकीर्णक हारीभद्रीय प्रतिपत्ति संधि प प . पद .. पद . Aaroga प्रकी प्रति संधि For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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