Book Title: Yoga kosha Part 1
Author(s): Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 409
________________ ( ३१८ ) वैक्रियमिश्र काययोगियों का उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात पुद्गल परिवर्तन रूप अनन्तकाल है ; क्योंकि वैक्रियमिश्र काययोग से वैक्रिय काययोग में जाकर, वैक्रियमिभ काययोग का अन्तर प्रारम्भ कर, असंख्मात पुद्गल परिवर्तन परिभ्रमण कर पुनः वैक्रियमिश्र काययोग को प्राप्त करनेवाले जीव के उपर्युक्त रूप अन्तर प्राप्त होता है। .०७-.८ आहारक काययोगी तथा आहारक मिश्रकाययोगी का एक जीव की अपेक्षा अन्तर आहारकायजोगि-आहारमिस्सकायजोगीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? -~षट् • खं• २।३ । सू ७४ । पु ७ । पृ० २१. रीका-सुगम। जहण्णेण अंतोमुहुत्तं। -षट० खं० २ । ३ । सू ७५ । पु ७ । पृ. २१०-११ टीका-कुदो १ आहारकायजोगादो अण्णजोगं गंतूण सव्वलहुमंतोमुहुत्तमच्छिय पुणो आहारकायजोगं गदस्त अंतोमुहुत्तरुषलंभादो। एगसमओ किण्ण लब्भदे १ ण, आहारकायजोगस्स पाघादाभावादो। ९षमाहारमिस्सकायजोगस्स वि वत्तन्वं । णवरि आहारसरीरमुट्ठाषिय सव्वजहण्णेण कालेण पुणो वि उहावेतस्स पढमसमए अतिरपरिसमत्ती कायब्धा । ___ उक्कस्सेण अद्धपोग्गलपरियह देसूर्ण।। - षट • खं• २ । ३ । सू ७६ । पू७ । पृ० २११ रीका-कुदो १ अणादियमिच्छादिहिस्स अद्धपोग्गलपरियादिसमए उसमसम्मत्तं संजमं च जुगवं धेत्ण अंतोमुहूत्तमच्छिय (१) अप्पमत्तोहोदूण (२) आहारसरीरं बंधिय (३) पडिभग्गो होदूण (४) आहारसरीर मुट्ठाषिय अंतोमुहुत्तमच्छिय (५) आहारकायजोगी होदूण आदि करिय एगसमयमच्छिय कालं काउण अंतरिय उवठ्ठपोग्गलपरियह भमिय अंतोमुठुत्तावसेसे संसारे अद्धमंतरं करिय (६) अंतोमुहुत्तमच्छिय (७) अबंधभावं गमस्स जहाकमेण अट्ठहि सत्तहि तोमुटुत्तेहि ऊणअद्धपोग्गलपरियट्टमेत्ततरुषलंमादो। आहारक काययोगी और आहारकमिश्र काययोगी जीवों का जघन्य अन्तर अन्तमहूत होता है; क्योंकि आहारक काययोग से अन्य योग में जाकर सबसे कम अन्तर्महुत रहकर पुनः आहारक काययोग को प्राप्त हुए जीव के अन्तमहूत रूप अन्तर प्राप्त होता है। . . . For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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