Book Title: Yoga kosha Part 1
Author(s): Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 408
________________ ( ३१७ ) वैक्रिय काययोगियों का जघन्य अन्तर एक समय है, क्योंकि बैक्रिय काययोग से मनोयोग या वचनयोग में जाकर वहाँ एक समय तक रहकर दूसरे समय में उस योग का व्याघात हो जाने के कारण वे क्रिय काययोग में जाने वाले जीव के एक समय रूप अन्तर प्राप्त होता है। वैक्रिय काययोगियों का उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात पुदगल-परिवर्तन रूप अनन्तकाल है। .०६ क्रियमिश्र काययोगी का एक जीप की अपेक्षा अन्तरकाल घेउब्धियमिस्सकायजोगीणमंतर केवचिरं कालादो होदि ? जहण्णेण दसषाससहस्साणि सादिरेयाणि ।। -षट० खं० २ । ३ । सू ७१-७२ । पु ७ । पृ० २०६ टीका-कुदो १ तिरिक्खेहितो मणुस्सेहितो वा देवेसु णेरइएसु वा उप्पजिय दीहकालेण धप्पजत्तीओ समाणिअ वेउब्धियकायजोगेण अंतरिय देसूणदसवाससहस्साणि अच्छिय तिरिक्खेसु मणुस्सेसु वा उपजिय सवजहण्णेण कालेण पुणो आगंतूण वेउव्यियमिस्सं गदस्स सादिरेयदसवस्ससहस्समेत्तं - तरुवलंभादो। कधमेदेसि सादिरेयत्तं १ ण, वेउम्वियमिस्सद्धादो तिरिक्तमणुल्सपजत्ताणं गम्भजाणं जहण्णाउवस्स बहुत्तुवलंभादो। उक्कस्सेण अणंतकालमसंखेजपोग्गलपरियह। -षट • खं० २ । ३ । सू ७३ । पु ७ । पृ० २१० टीका-कुदो? वेउब्धियमिस्सकायजोगादो वेउब्धियकायजोगं गंतूर्णतरिख असंखेनपोग्गजपरियहाणि परियट्टिय वेउब्धियमिस्सं गदस्स तदुषणभादो। वैक्रियमिश्र काययोगियों का जघन्य अन्तर कुछ अधिक दस हजार वर्ष होता है; क्योंकि, तियचों या मनुष्यों से देवों या नारकियों में उत्पन्न होकर दीर्घकाल द्वारा छः पर्यापियाँ पूरी कर बेक्रिय काययोग के द्वारा वैक्रियमिभ काययोग का अन्तर करके, कुछ कम दस हजार वर्ष तक वहीं रहकर तिर्यचों या मनुष्यों में उत्पन्न हो, सबसे कम काल में पुनः देव या नरक गति में आकर वैक्रियमिश्र काययोग को प्राप्त हुए जीव के सातिरेक दस दस हजार वर्ष रूप जघन्य अन्तर प्राप्त होता है । दस हजार वों की सतिरेकता का कारण यह है कि वैक्रिय मिश्र योग के काल की अपेक्षा तिर्यच और मनुष्य पर्याप्त गर्भज जीवों की जघन्य आयु बहुत पायी जाती है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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