Book Title: Yoga kosha Part 1
Author(s): Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 405
________________ ( ३१४ ) शेष चार मनोयोगी और पाँच वचनयोगी जीवों का भी उत्कृष्ट अन्तरकाल इसी प्रकार जानना चाहिए, क्योंकि इस अपेक्षा से इनमें कोई भेद नहीं है । मनोयोगी तथा वचनयोगी का मनोयोग तथा वचनयोग की अपेक्षा अन्तरकाल जघन्य अन्तर्मुहुर्त तथा उत्कृष्ट अनन्तकाल ( वनस्पतिकाल ) का है (देखें ५४ ) .०२ काययोगी का एक जीव की अपेक्षा अंतर कायजोगीणमंतरं केथविरं कालादो होदि ? - षट् ० ० खं० २ । ३ । सू ६२ | ७ | पृ० २०६ टीका - सुगमं । जहणेण एगसमओ । - षट् ० खं० २ । ३ | सू ६३ | पृ ७ | पृ० २०६ टीका - कुदो ? कायजोगादो मणजोगं कविजोगं वा गंतॄण एगसमयमच्छिय विदियसमए मुदे वाघादिदे वा कायजोगं गदस्स एगसमयअंतरुष भादो । उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं । होदि ? Jain Education International - षट् ० ० २ । ३ | सू ६४ | पु ७ | पृ० २०६ टीका - कुदो ? कायजोगादो मणजोगं वचिजोगं च परिवाडीए गंतून दो चि सव्वकसकालमच्छिय पुणो कायजोगमागदस्स अंतोमुहुत्तमेत्तं तरुवजंभादो 1 काययोगी जीवों का जघन्य अन्तरकाल एक समय तक होता है, क्योंकि काययोग से मनोयोग में या वचनयोग में जाकर एक समय रहकर दूसरे समय में मरण करने या योग के व्याघातित होनेपर पुनः काययोग को प्राप्त हुए जीव के एक समय का जघन्य अन्तर प्राप्त होता है । काययोगी जीवों का उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त मनोयोग और वचनयोग में क्रमशः जाकर तथा उन कालतक रहकर पुनः काययोग में खाये हुए जीव के प्राप्त होता है । काययोगी का जघन्य अन्तर एक समय का उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त का है ( देखें ५४ ) .०३.४ औदारिक काययोगी तथा औदारिक मिश्रकाय योगी का एक जीव की अपेक्षा अन्तर होता है, क्योंकि काययोग से दोनों योगों में उनके सर्वोत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त रूपकाययोग का अन्तर ओरालियका यजोगी-ओरालियमिस्सकायजोगीणमंतरं केषश्चिरं कालादो - षट्० खं० २ । ३ । सू ६५ | पु ७ | पृ० २०७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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