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से कदाचित् चरम, कदाचित् अचरम होते हैं । बहुवचन से सयोगी यावत् काययोगी चरम भी होते हैं और अचरम भी ।
जिस दंडक में जो योग हो वही कहना चाहिए।
अयोगी (नो संज्ञी नो असंज्ञी की तरह ) - जीव और सिद्ध अचरम है । परन्तु अयोगी मनुष्य एक वचन और बहुवचन की अपेक्षा चरम है ।
नोट :- जिसका कभी अन्त होता है वह चरम कहलाता है और जिसका कभी अन्त नहीं होता है वह अचरम कहलाता है । जीवत्व की अपेक्षा जीव का कभी अन्त नहीं होता अतः वह चरम नहीं, अचरम है। सिद्धत्व का कभी अन्त नहीं होता है अतः वह अचरम है ।
.६४ सयोगी जीव की सयोगीत्व की अपेक्षा स्थिति
.६४.१ सयोगी जीव की स्थिति :
सयोगी जीव सयोगोत्व की अपेक्षा दो प्रकार के होते है - ( १ ) अनादि अपर्य वासत तथा (२) अनादि सपर्यवसित ( देखो ५३ )
नोट :- अभव्यत्वकी अपेक्षा सयोगी जीव की स्थिति अनादि - अपर्यवसित है; भव्यत्वकी अपेक्षा सयोगी जीव की स्थिति अनादि सपर्यवसित है ।
.६४.२ मनोयोगी जीब की स्थिति
मनोयोगी जीव की स्थिति मनोयोग की अपेक्षा जघन्य एक समय की स्थिति तथा उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त की है (देखो ५३ )
• ६४.३ वचनयोगी जीव की स्थिति
वचनयोगी जीव की स्थिति जघन्य एक समय, उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त की है (देखे '५३) .६४.४ काययोगी की स्थिति
काययोगी जीव की स्थिति जघन्य अंतमुहूर्त, उत्कृष्ट अनंतकाल की है । (देखें५३)
६४.५ अयोगी जीव की स्थिति
अजोगी णं भंते! साइए अपजवसिए अयोगी जीव सादि-अपर्यवसित होते हैं ।
होदि ?
. ६५ सयोगी जीव का सयोगी की अपेक्षा अंतरकाल
.०१ मनोयोगी और वचनयोगी का एक जीव की अपेक्षा अंतर
जोगाणुवादेण पंचमणजोगि पंचवविजोगीणमंतरं केवचिरं कालादो
- षट्० खं० २ । ३ । सू ५६ | ७ | पृ० २०५
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- जीवा० प्रति ६ । सू २६६
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