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( ३१० ) कदाचित दो, तीन, चार या पाँच आदि वनस्पतिकायिक जीव इकठे होकर साधारण शरीर नहीं बांधते है। अनंत वनस्पतिकायिक जीव मिलकर एक साधारण शरीर बाँधते है उनमें लेश्या तीन-कृष्ण-नील-कापोत होती है योग-मन-वचन कायोग नहीं होता है परन्तु काययोग होता है। '६ द्वीन्द्रिय जीव समूहों में योग '७ त्रीन्द्रिय जीव समूहों में योग ८ चतुरिन्द्रिय जीव समूहों में योग ९ पंचेन्द्रिय जीव समूहों में योग
सिय भंते ! जाव-चत्तारि पंच वेंदिया एगयो साहारण सरीरं बंधंति xxx णो इणढे सयह। xxx। पतेयसरीरं बंधंति। xxx णो मणजोगी, वइजोगी वि कायजोगी वि।
एवं तेइ दिया वि, एवं चउरिदिया वि। x x x सिय भंते ! जाव चत्तारि पंच पंचिदिया एगयओ साहारण ०१ एवं जहा बेंदियाणं xxx तिविहो जोगो।
-भग० श २० । उ १ । सू १ से ४ द्वीन्द्रिय यावत् चतुरिन्द्रिय जीव समूह साधारण शरीर नहीं बांधते है, प्रत्येक शरीर वांधते है इन जीव समूहों में मनोयोग नहीं है । वचनयोग भी व काययोग भी है।
__पंचेन्द्रिय जीव समूह भी साधारण शरीर नहीं बांधते है, प्रत्येक शरीर बांधते है। इन जीव समूहों में तीन योग होते हैं। .६ से .८ सयोगी जीप .६१ सयोगी जीव और समपद .६१.१ सयोगी जीव दंडक और समपद
सब सयोगी नारकी सम सयोगी-सम लेशी नहीं है। विषम सयोगी है (देखो '५५) सब सयोगी असुरकुमार यावत् स्तनित कुमार सम सयोगी नहीं है । सब सयोगी पृथ्वीकाय सम सयोगी नहीं है।
इसी प्रकार सयोगी अपकाय, अग्निकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय तथा चतुरिन्द्रिय सम सयोगी नहीं है, विषम सयोगी है ।
सर्व सयोगी तिर्यच पंचेन्द्रिय सम सयोगी नहीं है, तथा न सम लेशी है। सर्व सयोगी मनुष्य सम सयोगी नहीं है, विषम सयोगी है ।
सर्व सयोगी वाणव्यंतर, ज्योतिषी तथा वैमानिक देव भी सम सयोगी नहीं है, विषम सयोगी है । समलेशी भी नहीं है विषम लेशी है ।
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