Book Title: Yoga kosha Part 1
Author(s): Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 400
________________ *५७ जीव समूहों में कितने योग १ पृथ्वीकायिक जीव समूहों में योग यि भंते! जाव चत्तारि पंच पुढविकाइया × × × । xxx पुढविकाइया पत्तेयाहारा पत्तेयपरिणामा पत्तेयंसरीरं बंधंति, प०२, बंधिता तओपच्छा आहारेति वा परिणामेति वा सरीरं वा बंधंति । ××× । तेणं भंते! जीवा किं मणजोगी, वयजोगी, कायजोगी ? गोयमा ! णो वयजोगी, कायजोगी । जो मणजोगी, ( ३०६ ) कदाचित् दो यावत् चार, पाँच पृथ्वीकायिक जीव मिलकर साधारण शरीर नहीं बांधते हैं क्योंकि पृथ्वीकायिक जीव पृथक्-पृथक् आहार करने वाले हैं और उस आहार को पृथक्पृथक् परिणमन करते हैं अतः वे पृथक्-पृथक् शरीर बांधते हैं और इसके पश्चात् आहार करते हैं, उसे परिणामाते हैं और फिर शरीर बांधते है । पृथ्वीकायिक जीव मनोयोगीवचन योगी नहीं होते हैं, काययोगी होते हैं । २ अप्कायिक जीव समूहों में योग ( आउकाइया) एवं जो पुढविकाइयाणं गमो सोचेव भाणियब्बो X X X I -भग श १६ । उ ३ । सू २१ ३ अग्निकायिक जीव समूहों में योग ४ बाउकायिक जीव समूहों में योग ( ते उक्काइया ) एबं चेव ( वाउकाइयाणं ) एवं चैव - भग० श १६ पृथ्वी कायिक की तरह अप्कायिक जीव मनोयोगी और वचनयोगी नहीं होते हैं परन्तु काययोगी होते हैं । | उ ३ | सू १ । ६ ༥ -भग० श १६ । उ ३ । सू २२, २३ अग्निकायिक तथा वाउकायिक जीवों समूहों - मनोयोगी, वचनयोगी नहीं होते हैं काययोगी होते है । Jain Education International वनस्पतिकायिक जीव समूहों में योग सिय भंते! जाव यत्तारि पंच वणस्लइकाइया० पुच्छा - गोयमा ! णो इसम | अणंताबणस्लइकाइया एगयओ साहारणसरीरं बंधंति । xxx सेसं जहा तेडक्काइयाणं । -भग० श १६ । ३ । सू १६ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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