Book Title: Yoga kosha Part 1
Author(s): Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 366
________________ ( २७५ ) टीका-तिरश्चां मनुष्याणां च किमिति तदुदयो न भवेत् १ न, तिर्यङ्मनुष्यगतिकर्मोदयेन सह वैक्रियकोदयस्य विरोधात्स्वभावाद्वा। न हि स्वभावाः परपर्यनुयोगार्हाः अतिप्रसङ्गात् । तिर्यञ्चो मनुष्याश्च वैक्रियकशरीराः श्रूयन्ते तत्कथं घटत इति चेन्न, औदारिकशरीरं द्विविधं विक्रियात्मकमषिक्रियात्मकमिति । तत्र यतिक्रियात्मकं तद्वै क्रियकमिति तत्रोक्त न तदत्र परिगृ. ह्यते विविधगुणद्ध र्यभावात् । अत्र विषिधगुणद्ध र्यात्मक परिगृह्यते, तश्च देषनारकाणामेव। वैक्रिय काययोग और वैक्रिय मिश्र काययोग देव और नारकियों में होते हैं। तिर्यच और मनुष्यों में इन दोनों योगों के उदय नहीं होने का कारण यह है कि तियंच और मनुष्यगति कर्मोदय के साथ वैक्रिय नामकर्म के उदय का विरोध है; अथवा, स्वभावतः इनमें वैक्रिय मामकर्म का उदय नहीं होता है। स्वभाव दूसरे के प्रश्नों के योग्य नहीं होता है, क्योंकि अतिप्रसंग दोष उपस्थित हो जायगा। तिर्यच और मनुष्य भी वे क्रिय शरीरधारी होते हैं, ऐसा जो सुना जाता है उसका अभिप्राय है-औदारिक शरीर दो प्रकार के मामे गये है-विक्रियात्मक और अविक्रियात्मक । मनुष्य और तिर्य'चों के विक्रियात्मक शरीर कहा गया है, जिसका यहाँ पर ग्रहण नहीं किया गया है, क्योंकि उसमें विविध गुण और ऋद्धियों का अभाव है। यहाँ पर विविध गुण और ऋद्धि से युक्त वैक्रियशरीर का ग्रहण किया गया है जो देव और नारकियों में ही होता है। '७ औदारिक काययोग किसके होता है ? ओरालियकायजोगो ओरासियमिस्सकाथजोगो तिरिक्त्रमणुस्साणं। -षट खं १ । १ सू ५७ । पृ १ पृ. २६५ देवनारकाणां किमित्यौदारिकशरीरोदयो न भवेत् १ न, स्वाभाव्यात देषनरकगतिकर्मोदयेन सह औदारिककर्मोदयस्य विरोधाद्वा। न च तिरश्चा मनुष्याणां चौदारिककाययोग एवेति नियमोऽस्ति तत्र कार्मणकाययोगदीनामभाषापत्तेः किं नु औदारिककाययोगस्तियंङ मनुष्याणामेष । औदारिक काययोग और औदारिकमिश्र काययोग नियंच और मनुष्यों में होते है। देव और नारकियों में औदारिक शरीर नहीं होने का कारण इनका स्वभाव है। अथवा देवगति और नरकगति नामकम के उदय के साथ औदारिक शरीर नामकर्म के उदय का विरोध है। किन्तु तिर्यच और मनुष्य के औदारिक काययोग ही होता है-- ऐसा नियम नहीं है क्योंकि ऐसा नियम स्वीकार करनेपर तिर्य च और मनुष्यों में कामणकाययोग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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