Book Title: Yoga kosha Part 1
Author(s): Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 389
________________ ( २६८ ) तुलसी, मातलिंगी, कस्तंभरी पिप्पलिका, अलसी, वल्ली, काकमाची, बुच्चु पिटोल कंदली, विउवा, वत्थुल, बदर, पत्तउर, सीयउर, जवसय, निगुंडी, कस्तुवादि, अत्थई, तलउडा, शण, पाण, कासमद, अग्घाडग, श्यामा, 'सिन्दुवार, करमद, अहरु सग, कटीर, ऐरावण, महित्थ, जाउलग, भालग, परिली, गजमारिणी, कुव्वकारिया, भंडी, जीवंती, केतकी ] गंज, पाटला, वासी अल्कोल-इनके मूल यावत बीज में काययोग होता है। .१२ सिरियक आदि वनस्पतिकाय में अह भंते ! सिरियकाण पनालिय कोरंटगबंधु जीवगमणोजा जहा पण्णवणाए पढमपए गाहाणुबसारेणं जाव नलनीय कंदमहाजाईणं एएसिणं जे जीवा मूलत्ताए वक्कमति एष एत्थवि मूलादीया दस उद्देसगा निरवसेसं जहा सालीणं । -भग श २२ । व ५ सिरियक, नवमालिका, कारंटक, बंधुजीवक, मणोज्जा (पिइय, पाण, कणेर, कुज्जय, सिंढुवार, जाती, मोगरोध यूथिका, मल्लिका वासन्ती, वत्थुल, कत्थुल, सेवाल, ग्रन्थी, मृगदंतिका चंपक जाति), नवणीइया, कंद, महाजाति-इनके मूल यावत बीज काययोगी होते हैं। .१३ पूसफलिका आदि वनस्पतिकाय में ___अह भंते ! पूसफलिकाकालिंगी तुंधीतउसीएला पालुंकी एच पयाणिछिदियवाणि पण्णवणा गाहाणुसारेण जहा तालवग्गे जाव दधि फोल्लइकाकलिसोक्कलिअक्कचोदीणं एएसि णं जे जीवा मूलत्ताए पक्कमति एवं मूलादीया दस उद्देसगा कायव्वा जहा तालवग्गो णवरं फल उद्देसे ओगाहणाए जहण्णेणं अगुलस्सं असंखेजइभागं उक्कोसेणं धणुपुहुत्तं, ठिई सव्वत्थ जहण्णेणं अंतोमुहुर्त उक्कोसेण वासपुहुत्तं सेसं तं चेव । -भग° श २२ । व ७ पूसफलिका, कालिंगी, तुंबडी, त्रपुवी, एलवालुकी, घोषातकी, पंडोला, पंचागुलिका, नीली, कण्डूइया, कडुइगा, ककोडी, कादेली, सुयवा, कुयधाय, वागुलीया, पावगाली, देवदाली, अप्पोया, अतिमुक्त, नागलता, कृष्णा, सूरवलकी, संघहा, सुमणया, जासुवण, कविंदवल्ली, मुद्दिया, द्राक्षनावेला, अंवाबल्ली क्षीदविदारिका, जयंती, गोपाली, पाणी, मायावल्ली, गुंजावल्ली, वच्छाणी, शशविंदु, गोत्तफुसिया, गिरिकर्णिका संउकी, अंजनकी, दधिपुष्पिका, काकली, सोकली, अर्क वोदी; इनके मूल यावर बीज में काययोग होता है । नोट-अंक '५५ से ५५.१३ तक वर्णित वनस्पतियाँ प्रत्येक वनस्पतिकाय है। उनमें केवल काययोग होता है । .१४ आलुक आदि साधारण वनस्पति काय में अह भंते । आलुय मूलगसिंग बरेहालिहरुक्खकंडरिय जास च्छोर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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