Book Title: Yoga kosha Part 1
Author(s): Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 396
________________ ( ३०५ ) (ग) तृतीय गुणस्थान के जीवों में दस योग-४ मन के योग, ४ वचन के योग, ___ औदारिक तथा वे क्रिय काययोग होते हैं । क्रमांक .५६ (घ) चतुर्थ गुणस्थान के जीवों में तेरह योग ( आहारक, आहारकमिश्र काययोग को बाद देकर ) होते हैं । क्रमांक ,५६ (ङ) पंचम गुणस्थान के जीवों में बारह योग ( ४ मन के योग, ४ वचन के योग, औदारिक, औदारिकमिश्र काययोग, वैक्रिय तथा वैक्रियामश्र काय होग) होते हैं । क्रमांक .५६ (च) छठे गुणस्थान के जीवों में चौदह योग ( कार्मण कायोग को बाद देकर ) कमांक .५६ (छ) सप्तम गुणस्थान के जीवों में पाँच योग ( सत्यमनोयोग, व्यवहार मनोयोग, सत्यवचन योग, व्यवहार वचनयोग, औदारिक काययोग ) होते हैं । क्रमांक .५६ (ज) अष्टम गुणस्थान के जीवों में सप्तम गुणस्थान की तरह पाँच योग होते है । (झ) नववे गुणस्थान के जीवों में उपयुक्त पाँच योग होते हैं । (ञ) दसवें गुणस्थान के जीवों में उपर्युक्त पाँच योग होते हैं । (ट) ग्यारवे गुणस्थान के जीवों में उपर्युक्त पाँच योग होते हैं । (ठ) बारहवें गुणस्थान के जीवों में उपर्युक्त पाँच योग होते है । (ड) तेरहवें गुणस्थान के जीवों में सात योग ( सत्यमनोयोग, व्यवहारमनोयोग, सत्यवचन, व्यवहारवचन के योग, औदारिक, औदारिकमिश्र काययोग व कार्मण काययोग) () चौदहवें गणस्थान के जीवों में अयोगी होते हैं। क्रमांक ५६ '३३ चौदह जीव भेद के अनुसार जीव में '३३.१ (क) प्रथम जीव के भेद में सूक्ष्म अपर्याप्त एकेन्द्रिय में तीन योग-औदारिक काययोग, औदारिकमिश्र काययोग तथा कार्मण काययोग । (ख) द्वितीय जीव के भेद में पर्याप्त सूक्ष्म एकेन्द्रिय में-एक औदारिक काययोग । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428