Book Title: Yoga kosha Part 1
Author(s): Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 394
________________ ( ३०३ ) (ग) भुजपरिसर्प स्थलचर संमुच्छिम में (भुयपरिसप्प समुच्छिम थलचरा ) जहा जलयराणं। -जीवा० प्रति १ । २ । स ११२ भुजपरिसर्प स्थलचर संमुच्छिम तिर्यच पंचेन्द्रिय में दो योग होते है काययोग व वचनयोग। .३ खेचर संमुच्छिम तिर्यच पंचेन्द्रिय में (समुच्छिम पंचेन्दियतिरिक्त जोणिया xxx खहयरा) जहा जलयराणं। -जीवा० प्रति १ । २ । सू १२५ खेचर संमुच्छिम तिर्यच पंचेन्द्रिय में दो योग होते है -वचनयोग व काययोग। .२९ गर्भज तिर्य च पंचेन्द्रिय में .१ जलचर गर्भज तिर्यच पंचेन्द्रिय में (गम्भवतिय पर्चेदियतिरिक्त जोणिया xxx जजयरा) जोगे तिधिहे। -जीवा० प्रति १ । २ । सू ११६ गर्भज जलचर तिर्य च पंचेन्द्रिय में तीन योग-मनोयोग वचनयोग व काययोग होते हैं। .२ स्थलचर गर्भज तिर्यच पंचेन्द्रिय में चतुष्पाद स्थलचर गर्भज तिर्यंच पंचेन्द्रिय में गम्भवक्कंतिय पंचेंदिय तिरिषखजोणिया xxx थलचरा xxx वउप्पया x x x जहा जलयराणं। -जीवा० प्रति १।२।२१२१ चतुष्पाद स्थलचर गर्भज तिर्यच पंचेन्द्रिय में तीन योग होते है। उरपरिसर्प स्थलवर गर्भज तिर्यच पंचेन्द्रिय में ___ गमवक्कंतिय पंचेन्दियतिरिक्ख जोणिया xxx थनवरा xxx परिसप्पाxxx उरपरिसप्पा जहा जलयराणं । -जीवा० प्रति १ । २ । सू १२१ उरपरिसर्प स्थलचर गर्भज तिर्यच पंचेन्द्रिय में तीन योग होते हैं । भुजपरिसर्प स्थलचर गर्भज तिर्यच पंचेन्द्रिय में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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