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( ३०० ) मासवर्णी, मुदगपर्णी, जीवक, सरसव, करेणुक, काकोली, क्षीरकाकोली, भंगी, णही, कृमिराशि, भद्रमुस्ता, लांगली, पउय, किण्णापउलय, पाढ, रेणुका, लोही इनके मुल यावत् बीज में काययोगी होते हैं ।
एवं एत्थ पंचमुषि घग्गेसु पन्नास उद्देसगा भाणियव्या सव्वत्थ xxx।
-~भग• श २३ । व ६ से १० उपरोक्त ( १५.१४ से '१५.१८ तक ) साधारण वनस्पतिकाय काययोगी होते हैं, मनोयोगी तथा वचनयोगी होते हैं ।
.१९ पृथ्वीकाय में .१ सूक्ष्म पृथ्वीकाय में
(सुहुम पुढविकाइया) तेणं भंते! जीवा किं मणजोगी, वजोगी कायजोगी ? गोयमा! नो मणजोगी, नो वइजोगी, कायजोगी ?
-जीवा० प्रति १ । २ । सूत्र ३१ सूक्ष्म पृथ्वीकाय के जीव मनोयोगी वचनयोगी नहीं होते है, काययोगी होते हैं । .२ बादर पृथ्वीकाय में (बादर पुढविकाइया ) अवसेसं जहा सुहुमपुढवि काइयाणं ।
-जीवा० प्रति १ । २ । सू ५६
बादर पृथ्वीकाय के जीव काययोगी होते हैं, मनोयोगी तथा वचनयोगी नहीं होते हैं ।
.२० अपकाय में .१ सूक्ष्मअपकाय में (सुहुम आउकाइयाणं) नहेच सुहुम पुढविकाइयाणं।
-जीवा प्रति १।२ । सू ६४ सूक्ष्म अपकाय जीव कायजोगी होते हैं, मनोयोगी व वचनयोगी नहीं होते हैं। .२ वादर अप्काय में ( बादर आउक्काइयाणं) जहा बादर पुढविक्काइयाणं
-जीवा० प्रति १ । २ । सू ६५ बादर अप्काय के जीव काययोगी होते हैं, मनोयोगी व वचनयोगी नहीं होते हैं ।
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