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किन्तु यह भी ठीक नहीं है, क्योंकि पर्याप्त अवस्था में किसी एक योग के रहने पर शेष योग भी संभव है, इस अपेक्षा से वहाँ अन्य योगों का सद्भाव स्वीकार किया गया है; व्यथा, उस अवस्था में उन योगों की शक्ति विद्यमान रहती है, इस अपेक्षा से सद्भाव माना गया है
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• २६ एकयोगी
काययोगो एवं दियाणं ।
- षट्० खं० १ । १ सू ६७ । १ । पृ० ३०६
टीका - एकेन्द्रियाणामेकः काययोग एव, द्वीन्द्रियादीनाम संक्षिपर्यन्तानां काययोगो द्वावेव, शेषास्त्रियोगाः ।
एकेन्द्रिय जीवों में एक काययोग ही होता है । द्वीन्द्रिय से लेकर असंज्ञी पंचेन्द्रिय तक वचन और काय - ये दो योग होते हैं, शेष जीवों में तीनों ही योग होते हैं ।
विभिन्न जीव और योग स्थिति
.१ लयोगी जीव की सयोगीत्व की अपेक्षा स्थिति
सजोगी णं भंते! सजोगि ति कालओ केषश्चिरं होइ ? गोयमा ! सजोगी
अणादीए वा
}
दुविहे पण्णत्ते । तंजहा - अणादीए वा अपज्जयसिए ?
सपज्जबसिए ।
मणजोगी णं भंते! मणजोगि प्ति कालओ के चचिरं होइ ? गोयमा ! जहणेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुद्दत्तं ।
एवं वयजोगी षि |
कायजोगी णं भंते ! कायजोगी त्ति कालओ केवविरं होइ ? गोयमा ! जहण्जेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं वणव्फकालो ।
अजोगी णं भंते! अजोगिन्ति कालतो केवविरं होइ ? गोयमा ! सादीए १ अपज्जवसिए । - पण्ण० प १८ । सू १३२१-२५ । पृ० ३०६
सयोगी के दो भेद है - अनादि अपर्यवसित, अनादि सपर्यवसित । मनोयोगी-वचनयोगी की स्थिति जघन्य एक समय, उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त की होती है। काययोगी की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त उत्कृष्ट अनंतकाल ( वनस्पतिकाल ) जितनी है।
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