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( २६३ ) .३ काययोगी ०४ बैंक्रिय काय योगी ०५ आहारक काययोगी
xxx पंचमणजोगी - पंचपचिजोगि - कायजोगि - वेउब्धिकायजोगि xxx पत्तब्धमेदेसिमुषकमणंत (दसणादो) (जहा नेरइया)। ___णेरइया पढमसमए सियाकदी xxx । सिया णो कदी xxx। सिया अवत्तव्यकदी। xxx अपदमा कदी च एव । xxx।
· षट ० ख० ४ । १ । सू ६६ । टीका । पू६ । पृ० २७८ पंचमनयोगी, पंचवचनयोगी, काययोगी, वैक्रिययोगी जीव प्रथम समय में कचित् कृति संख्यक, कथंचित नोकृति संख्यक, अथवा अवक्तव्य कृति संख्यक होते हैं। लेकिन अप्रथम समय में केवल कृति संख्यक ही होते हैं। .८ संचयानुगम में क्षेत्रानुगम की अपेक्षा योगी जीवों की क्षेत्र-स्थिति
खेत्तानुमेण x x x पंचमणजोगी-पंचवचजोगी वेउब्धियदुग-आहारकदुग xxx लोगस्स असंखेजदिभागत्तणेण भेदाभावदो। xxx। कायजोगि ( कदि-णोकदि-अषत्तव्य-संचिदा केडिखेत्ते ? सव्वजोगे। कुदो १ आणंतियादो ) आणतियं पडि भेदाभावादो।xxx ओरालिय कायजोगि-ओरालियमिस्स कायजोगि-कम्मइकायजोगि ( सध्यलोए ) भेदाभाषादो। xxx वेत्ताणुगमो समत्तो।
-षट् • खं० ४ । १ । सू६६ । पु९ पृ. २८५४७ क्षेत्रानुगम की अपेक्षा पाँच मनोयोगी तथा पाँच वचनयोगी वैक्रियद्विग तथा आहारकद्विग जीवों में कृति, नोकृति तथा अवक्तव्य संचित जीव लोग के असंख्यातवें भाग में रहते हैं। काययोगी जीव सर्वलोक में रहते हैं। क्योंकि ये अनन्त है। औदारिक कायबोगी, औदारिकमिभ काययोगी, कामर्णकाययोगी सर्व लोक में रहते हैं । ५ स्पर्शानुगम से संचित योगी जीवों का स्पृष्ट क्षेत्र
पोसणाणुगमेण xxx कायजोगि ( सम्धलोगो फोसिदं)। xxx आहारकदुग (जोगस्स असंखेजदिभागो)। xxx पंचमणजोगि-पंचपछि जोगिसु तिण्णिपदेहिं केवडियं खेत्तं फोसिदं १ बोगस्ल असंखेजदिमागो अटू चोइसभागा देसूणा सम्घलोगो। कुदो ? मुक्कमारंणतियल्स षि मण-पचिजोगसंभषादो। ओरालिय कायजोगि-ओरालियमिस्म-कायजोगि-कम्मइयकाय
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