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( २६५ ) पंथगाणं x x x एवं मूलादीया दस-उद्देसगाभाणियव्या जहेच सालीणं निरषसेसं तहेव।
-भग० श २१ । व ३ । उ १ से १० ।प्र। कलह, मसूर, तिल, मूंग, अरहड़, वाल, कुलत्थी, आलिसंदक, सटिन, पालिपंथक, वनस्पति के मूल, कन्द, स्कंध, त्वचा, शाखा, प्रवाल, पत्र में तथा पत्र-पुष्प-फल वीज आदि वनस्पति काय के जीव मनोयोगी वचनयोगी नहीं होते हैं काययोगी होते है। '' .२ अलसी आदि बनस्पति-काय में
अह भंते ! अवसि-कुसंभ-कोहव-कंगु-दालग, तुपरी-कोदुसा-सण-सरि. सवमूलग बीयाणं xxx एवं एत्थवि मूलादीया दस उसगा जहेव सालीर्ण निरवसेसं तहेव भाणियध्वं । -भग० श २१ । व ३ । उ १ से १० । प्र१
अलसी, कुसम्भ कोद्रव, कांग, दाल, कुवेर, कोदुआ, सण, सरिसव, मूलक बीज वनस्पति के मूल, कन्द-स्कंध-त्वचा, शाखा, प्रवाल, पत्र के जीव काययोगी होते है। । .३ बांस आदि बनस्पति काय में
अह भंते ! बंस-वेणु-कणग-ककावंस-चारवंस-दण्डा-कुडा-विमाचण्डावेणुया कल्लाणीणं xxx । एवं एत्थघि मूलादीया दस उहेसगा जहेष सालीण xxx
-भग श २१ । व ४ बांसवेणु, कनक, ककविंश, चारुवंश, दण्डा, कुडा, विया, चण्डा, वेणुका, कल्याणी, इनके मूल यावत् बीज के जीव काययोगी होते हैं। .४ इक्षु बनस्पति-काय में
अह भंते ! उपखु-इक्खु-पाडिया, पीरणा, इकड-भमास-सुंठि-सत्त-वेत, तिमिर-सयपोरग नलाणं x x x एवं जहेच सपाणे तहेव, एत्थाषि मूलादीया इस उहेसगा।
-भग श २१ । व ५ - इक्षु, इक्षुवाटिका, वीरण, इक्कडभमास-सूठ-शर-वेत्र, तिमिर सयपोरग, नल में काययोग होता है। .५ सेडिय आदि तृण विशेष वनस्पति काय में
अह भंते ! सेडिय-भंतिय-दन्भ-कोतिय-दम्भकुस-पव्वग-पादेइल-अन्जुणआसाढग-रोहिय-समु-अक्खीर-भुस एरंड-कुरुकंद करकर-सुंठ-षिभंगु- महुरयण पुरग-लिप्पिष-संकुलितणाणं xxx एवं एत्थषि दस उहेसगा निरषसेसं जहेष वंसवग्गो।
-भग० श २१ । व६
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