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प्रथम समयोत्पन्न असंज्ञी पंचेन्द्रिय आदि आठ में काययोगी होते हैं । मनोयोगी वचनयोगी नहीं होते हैं ।
- १०५ महायुग्म संज्ञी पंचेन्द्रिय में योग
• १ संज्ञी पंचेन्द्रिय कृतयुग्मकृतयुग्म में योग
( कडजुम्मकडजुम्म सण्णि पंचिदिया ) मणजोगी - वयजोगी- कायजोगी xxx एवं सोलसु बि जुम्मेसु भाणियव्वं XXX ।
- भग० श ४०
कृतयुग्मकृतयुग्म संज्ञी पंचेन्द्रिय मनोयोगी- वचनयोगी और काययोगी होते हैं । सोलह महायुग्मों वाले मनोयोगी- वचनयोगी काययोगी होते हैं ।
• २ प्रथम समय कृष्ण लेशी कृतयुग्मकृतयुग्म संज्ञी पंचेन्द्रिय जीव में योग
( पढमसमय कण्हलेस कडजुम्मकडजुम्म-सणि पंचिंदिया ) जहा सणि पंचिदिय पढमसमय उसए तहेब णिरवसेसं । xxx एवं सोलससुवि जुम्मेसु । x x x । एवं एएषि एक्कारस वि उद्देसगा कण्हले सलए ।
- भग० श ४० । श २ । सू २
प्रथम समय कृष्णलेशी कृतयुग्मकृतयुग्म संज्ञी पंचेन्द्रिय में काययोग होता है । वचनयोग- मनोयोग नहीं होता है ।
इस प्रकार सोलह महायुग्मों में काययोग कहना चाहिए ।
इस प्रकार कृष्णलेशी शतक के आठ उद्देशक में काययोग होता है ।
• ३ कृष्णलेशी कृतयुग्मकृतयुग्म संज्ञी पंचेन्द्रिय में योग
( कण्हलेस कडजुम्मकडजुम्म सण्णि पंचिंदिया ) तहेव जहा पढमुद्दे - सओ सण्णीणं X××।
-भग० श ४० । श २
कृष्णलेशी कृतयुग्मकृतयुग्म संज्ञी पंचेन्द्रिय - ( संज्ञी के प्रथम उद्देशक की तरह ) मनोयोगी - वचनयोगी-काययोगी होते हैं । इसी प्रकार सोलह महायुग्म मनोयोगी - वचनयोगी काययोगी होते हैं ।
४ नीललेशी कृतयुग्मकृतयुग्म संज्ञी पंचेन्द्रिय में योग ।
प्रथम समय नीललेशी कृतयुग्मकृतयुग्म संज्ञी पंचेन्द्रिय में योग ।
एवं नीलले सेतु षि सयं । xxx एवं तिसु उद्देसएसु, सेसंतंचेष |
- भग० श ४० । श ३
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