Book Title: Yoga kosha Part 1
Author(s): Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 354
________________ ( २६३ ) प्रथम समयोत्पन्न असंज्ञी पंचेन्द्रिय आदि आठ में काययोगी होते हैं । मनोयोगी वचनयोगी नहीं होते हैं । - १०५ महायुग्म संज्ञी पंचेन्द्रिय में योग • १ संज्ञी पंचेन्द्रिय कृतयुग्मकृतयुग्म में योग ( कडजुम्मकडजुम्म सण्णि पंचिदिया ) मणजोगी - वयजोगी- कायजोगी xxx एवं सोलसु बि जुम्मेसु भाणियव्वं XXX । - भग० श ४० कृतयुग्मकृतयुग्म संज्ञी पंचेन्द्रिय मनोयोगी- वचनयोगी और काययोगी होते हैं । सोलह महायुग्मों वाले मनोयोगी- वचनयोगी काययोगी होते हैं । • २ प्रथम समय कृष्ण लेशी कृतयुग्मकृतयुग्म संज्ञी पंचेन्द्रिय जीव में योग ( पढमसमय कण्हलेस कडजुम्मकडजुम्म-सणि पंचिंदिया ) जहा सणि पंचिदिय पढमसमय उसए तहेब णिरवसेसं । xxx एवं सोलससुवि जुम्मेसु । x x x । एवं एएषि एक्कारस वि उद्देसगा कण्हले सलए । - भग० श ४० । श २ । सू २ प्रथम समय कृष्णलेशी कृतयुग्मकृतयुग्म संज्ञी पंचेन्द्रिय में काययोग होता है । वचनयोग- मनोयोग नहीं होता है । इस प्रकार सोलह महायुग्मों में काययोग कहना चाहिए । इस प्रकार कृष्णलेशी शतक के आठ उद्देशक में काययोग होता है । • ३ कृष्णलेशी कृतयुग्मकृतयुग्म संज्ञी पंचेन्द्रिय में योग ( कण्हलेस कडजुम्मकडजुम्म सण्णि पंचिंदिया ) तहेव जहा पढमुद्दे - सओ सण्णीणं X××। -भग० श ४० । श २ कृष्णलेशी कृतयुग्मकृतयुग्म संज्ञी पंचेन्द्रिय - ( संज्ञी के प्रथम उद्देशक की तरह ) मनोयोगी - वचनयोगी-काययोगी होते हैं । इसी प्रकार सोलह महायुग्म मनोयोगी - वचनयोगी काययोगी होते हैं । ४ नीललेशी कृतयुग्मकृतयुग्म संज्ञी पंचेन्द्रिय में योग । प्रथम समय नीललेशी कृतयुग्मकृतयुग्म संज्ञी पंचेन्द्रिय में योग । एवं नीलले सेतु षि सयं । xxx एवं तिसु उद्देसएसु, सेसंतंचेष | - भग० श ४० । श ३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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