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.८ पद्मलेशी कृतयुग्मकृतयुग्म संज्ञी पंचेन्द्रिय
पढम समय
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( २६५ )
در
जहा तेउलेस्सासयं तहा पम्हलेस्सा सयं वि xxx सेसंतं चेव ।
भग० श ४० श. ६
पद्मलेशी कृतयुग्मकृतयुग्म संज्ञी पंचेन्द्रिय में काययोग- वचनयोग-मनोयोग होता है। सोलह महायुग्म में तीनों योग होते हैं ।
प्रथम समय पद्मलेशी कृतयुग्मकृतयुग्म संशी पंचेन्द्रिय में काययोग होता है । सोलह महायुग्मों में आठ उद्देशक में काययोग होता है ।
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'३० शुक्ललेशी कृतयुग्मकृतयुग्म संज्ञी पंचेन्द्रिय
प्रथम समय
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सुक्कलेस्ससयं जहा ओहियसयं । सेसं तहेव जाव अनंतखुन्तो ।
शुक्ललेशी कृतयुग्मकृतयुग्म संची पंचेन्द्रिय- मनोयोगी - वचनयोगी - काययोगी होते | सोलह महायुग्म मनोयोगी वचनयोगी काययोगी होते हैं ।
-भग० श ४० । श ७
प्रथम समय शुक्ललेशी कृतयुग्मकृतयुग्म संज्ञी पंचेन्द्रिय में काययोग होता है वचनयोग व मनोयोग नहीं होता है सोलह महायुग्म में आठ उद्देशक में काययोग होता है ।
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३१ कृतयुग्मकृतयुग्म भवसिद्धिक संज्ञी पंचेन्द्रिय में योग
( भवसिद्धिय कडजुम्मकडजुम्मसणिपंचिदिया जहा पढमं सण्णिसयं तहा यव्वं भवसिद्धियाभिलावेण ।
-भग० श ४० । श८
कृतयुग्मकृतयुग्म भवसिद्धिक संज्ञी पंचेन्द्रिय में प्रथम शतक की तरह मनोयोगी, बचनयोगी व काययोगी होते हैं ।
.३२ कृष्णलेशी भवसिद्धिक कृतयुग्मकृतयुग्म संज्ञी पंचेन्द्रिय में योग
( कण्हलेस -भवसिद्धिय- कडजुम्मकडजुम्मसण्णिपंचिंदिया ) एवं एएण अभिलावेणं जहा ओहियकण्हलेस्संसयं ।
- भग० श ४० | शतक ६
कृष्णलेशी भवसिद्धिक कृतयुग्मकृतयुग्म संज्ञी पंचेन्द्रिय मनोयोगी, वचनयोगी, काययोगी होते है ।
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• ३३ नीललेशी भवसिद्धिक कृतयुग्मकृतयुग्म संज्ञी पंचेन्द्रिय में योग
एवं नीललेस्स भवसिद्धिए धि सय ।
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-- भग० श ४० । श १०
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