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( कण्हलेस कडजुम्मकडजुम्मएगिंदिया )
एवं जहा ओहि उद्देस XXX सेसं तहेब जाव अनंतखुत्तो । एवं सोलस वि जुम्मा भाणियव्का । भग० श ३५ । श २
कृष्णलेशी कृतयुग्म कृतयुग्म एकेन्द्रिय आदि सोलह महायुग्म में काययोग होते है ।
• ६८.२ प्रथम समय कृष्ण लेशी कृतयुग्म कृतयुग्म एकेन्द्रिय में योग
( पढम-समय- कण्हलेस - कडजुम्मकडजुम्मएगिंदिया ) एवं जहा ओहियस एक्कारस उद्देगा भणिया तहा कण्हलेस्सप बि एक्कारस उद्देलगा भाणियव्वा ।
-भग० श ३५ । श २
औधिक शतक के ग्यारह उद्देशक के समान कृष्ण लेशी शतक में भी ग्यारह उद्देशक कहना | उनमें काययोग होता है ।
• ६८.३ नील लेशी महायुग्म में एकेन्द्रिय में
• ६८.४ कापोत लेशी
एवं णीलले सेहि वि सयं कण्हलेस्ससयसरिदि, एक्कासंस उसगा
तय |
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एवं काउलेस्सेहि वि सयं कण्हलेस सयसरिसं ।
होता है ।
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-भग० श ३५ । श ३।४
कृष्ण लेश्या शतक के समान नील लेश्या - कापोत लेश्या सोलह युग्म में काययोग
*६६ भवसिद्धिक महायुग्म में योग
'६६·१ भवसिद्धिक कृतयुग्म कृतयुग्म एकेन्द्रिय में योग
(भवसिद्धिय कडजुम्मकडजुम्मएगिदिया ) जहा ओहियसयं तद्देष । raj एक्कारससु बि उसएसु ।
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भवसिद्धिक कृतयुग्म कृतयुग्म एकेन्द्रिय में काययोग होता है । ही ग्यारह योग (काययोग) होते हैं । सोलह महायुग्म में काययोग होता है । ·६६२ कृष्णलेशी भवसिद्धिक कृतयुग्मकृतयुग्म एकेन्द्रिय में योग
- भग० श ३५ श
( कण्हलेस - भवसिद्धिय कडजुम्म कडजुम्मएगिदिया) एवं कण्हलेस - भवसिद्धियएगिदिएहिं बि लयं बिइयस्य कण्हलेस्ससरिसं भाणियन्वं ।
-भग० श ३५ / श ६
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ग्यारह उद्देशक में
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