Book Title: Yoga kosha Part 1
Author(s): Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 342
________________ ( २५१ ) ९६१९.४ आनत यावत अच्युत ( आनंत, प्राणत, आरण-अच्युत) देवों से मनुष्य योनि में उत्पन्न होने योग्य जीवों में आणय देवे णं भंते ! जे भविए मणुस्सेसु उपजित्तए xxx तेणं भंते ! एवं जहेष सहस्सारदेषाणं पत्तव्धया xxx सेसं तं चेव xxx एवं णव वि गमगा.xxx एवं जाप अच्चुयदेवोxxx) उनके नौ गमकों में ही तीनों योग होते हैं। --- भग• श २४ । उ २१ । सू १०.११ ६.१६६ ग्रेवेयक कल्पातीत ( नौ अवेयक ) देवों से मनुष्य योनि में उत्पन्न होने योग्य जीबों में गमक १-६-गेवेन्जग देवे णं भंते ! जे भधिए मणुस्सेतु उवषजित्तए xxx अपसेसं महा आणयदेवस्स बत्तव्यया xxx सेसंत चेव xxx एवं सेसेसु वि अट्ठगमएसु) उनके नौ गमकों में ही तीनों योग होते हैं । - भग० श २४ । उ २१ । सू १४ १६१९१० विजय वैजयन्त, जयत्त, अपराजित तथा सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरौपपातिक कल्पातील देवों से मनुष्य योनि में उत्पन्न होने योग्य जीवों में विजय, वेजयंत, जयंत, अपराजिय देवे णं भंते! जे भषिए मणुल्सेतु उववज्जित्तए xxx एवं जहेच गेवेजग देवाणंxxxएवं सेसा पि अडगमगा भाणियषाxxxसेसं तं चेव । सम्वट्ठसिद्धगदेवे णं भंते १ जे भधिए मणुस्सेसु उषषजित्तए.१ सा चेष विजयादि देष बत्तन्वया भाणियव्वा ।xxx। -भग० श २४ । उ २१ । सू १६-१६ विजयादि चार अनुत्तरोपातिक देवों के नौ ही गमकों में तीन योग होते हैं। सर्वार्थसिद्ध देवों में प्रथम तीन गमक होते है- उनमें तीनों योग होते हैं। ९६.२० वाणव्यतर देवों में उत्पन्न होने योग्य जीवों में९.६.२०.१ पर्याप्त असंशी तियंच पंचेन्द्रिय-योनि से वाणव्यंतर देवों में उत्पन्न होने योग्य जीवों में गमक १-१-चाणमंतराणं भंते! एवं जहेष णागकुमारहेसए असन्नी तहेष निरषसेसं )xxx ) उनके नौ गमकों में वचनयोग-काययोग होता है परन्तु मनोयोग नहीं होता है। -भग• श २४ । उ २२ । सू१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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